ऑनलाइन संस्कृत वर्गकी घोषणा करनेपर अनिष्ट शक्तियोंको मिर्ची लग गई !


उपासनाका कोई भी नूतन उपक्रम आरम्भ हो और हमारी ‘प्रिय’ अनिष्ट शक्तियां हमें या हमारे सहयोगियोंको कष्ट न दें, यह कैसे हो सकता है ! १२ मार्चको जैसे ही ऑनलाइन संस्कृत वर्गकी घोषणा की, उन्हें मिर्ची लग गई ! १३ मार्चको तो प्रातःकालसे ही कष्ट होने लगा ! उठ ही नहीं पा रही थी ! किसीप्रकार दोपहार दो बजे उठी सोचा कुछ पंक्तियां पंचांगमें जानेवाले धर्मधारा लेख हेतु लिख देती हूं ! तो उन्होंने संगणकपर आक्रमण कर दिया एक घंटे प्रयत्न करती रही कुछ नहीं हो पाया तो कुछ कार्यसे बाहर चली गई | रात्रि साढे सात बजे जब आई और किसीप्रकार पंचांग संकलित कर जैसे ही भेजा पुनः इतना बडा सूक्ष्मसे आक्रमण हुआ कि मैं बेसुध होकर सो गई ! अगले दिवस पुनः संगणकमें अडचनें आ रही थीं, लेखन करना संभव ही नहीं हो रहा था अतः अंतमें संध्या साढे पांच बजे नारियलसे संगणककी दृष्टि उतारी तब जाकर वह चला और पंचांग भेज पायी ! इस प्रसंगसे सिद्ध होता है कि कि अनिष्ट शक्तियोंको संस्कृत भाषासे किन्तु घृणा है और इसमें कितना अधिक चैतन्य है और साथ ही वे यह प्रमाण पत्र भी दे गईं कि इस उपक्रमको यश मिलेगा, जी हां जब भी कभी हमें इसप्रकार कष्ट होता है तो मैं समझ जाती हूँ की उन्हें इस उपक्रमका भविष्य दिख गया है   ! – (पू.) तनुजा ठाकुर, संस्थापिका, वैदिक उपासना पीठ


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