पञ्च गव्यका चिकित्सकीय महत्व


पंचगव्यका निर्माण गायके दूध, दही, घी, मूत्र, गोबरके द्वारा किया जाता है । पंचगव्यद्वारा शरीरके रोगनिरोधक क्षमताको बढाकर रोगोंको दूर किया जाता है । गोमूत्रमें प्रति-ऑक्सीकरणकी क्षमताके कारण डीएनएको नष्ट होनेसे बचाया जा सकता है। गायके गोबरका चर्म रोगोंमें उपचारीय (हीलिंग) महत्त्व सर्वविदित है । दही एवं घीके पोषण मानकी (मूल्यकी) उच्चतासे सभी परिचित हैं। दूधका प्रयोग विभिन्न प्रकारसे भारतीय संस्कृतिमें पुरातन कालसे होता आ रहा है । घीका प्रयोग शरीरकी क्षमताको बढाने एवं मानसिक विकासके लिए किया जाता है। दहीमें सुपाच्य प्रोटीन एवं लाभकारी जीवाणु होते हैं जो क्षुधाको बढानेमें सहायता करते हैं । पंचगव्यका निर्माण देसी, मुक्त वन विचरण करनेवाली गायोंसे प्राप्त उत्पादोंद्वारा ही करना चाहिए । गोमूत्रमें ‘नाइट्रोजन’, ‘सल्फर’, ‘अमोनिया’, ‘कॉपर’, लौह तत्त्व, ‘यूरिक एसिड’, ‘यूरिया’, ‘फास्फेट’, ‘सोडियम’, ‘पोटैशियम’, ‘मैंगनीज’, ‘कार्बोलिक एसिड’, ‘कैल्शियम’, ‘विटामिन ए, डी,बी, ई’, ‘एंजाइम’, ‘लैक्टोज’, हिप्पुरिक अम्ल, ‘क्रिएटिनिन’, ‘ऑरम हाइड्रॉक्साइड’ मुख्य रूपसे पाये जाते हैं । ‘यूरिया मूत्रल’ कीटाणु नाशक है । ‘पोटैशियम’ क्षुधावर्धक, रक्तचाप नियामक है । ‘सोडियम’ द्रव मात्रा एवं तंत्रिका शक्तिका नियमन करता है । ‘मैग्नीशियम’ एवं ‘कैल्शियम’ हृदयगतिका नियमन करते हैं । गोमूत्र और गोबर, पौधोंके लिए भी बहुत उपयोगी कीटनाशक सिद्ध हुए हैं । कीटनाशकके रूपमें गोबर और गोमूत्रके उपयोगके लिए अनुसंधान केन्द्र खोले जा सकते हैं, क्योंकि इनमें रासायनिक उर्वरकोंके दुष्प्रभावोंके बिना, खेतिहर उत्पादन बढानेकी अपार क्षमता है ।



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