आजकल मैंने देखा है कि कुछ पंडितगण जब कर्मकाण्ड कराते हैं तो वे अपने स्तोत्र या मंत्रके ग्रन्थके स्थानपर भ्रमणभाष (मोबाइल) लेकर पूजा कराते हैं और जैसे ही यजमान कुछ कर रहे होते हैं वे भ्रमणभाष संचमें अपने गोरखधंधेमें उलझ जाते हैं ! देव पूजा तभी सफल होता है जब पूजक और पुजारी दोनों उसे भावसे करे, भ्रमणभाष चाहे आजके कालमें कितना भी उपयोगी हो वह एक शिवत्वहीन तामसिक उपकरण है; अतः पूजा-पाठ कर्मकाण्डको पारम्परिक ही रहने दें, ऐसा अनुरोध मैं अपने पंडित बंधुओंसे करना चाहती हूं ! यजमान भी पंडितजीको पूजामें आमंत्रित करते समय इसकी पूर्व सूचना दें |
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