पिछले तीन वर्षोंसे उपासनाके आश्रममें या भिन्न स्थानोंपर हिन्दू राष्ट्रकी स्थापना निमित्त भिन्न कर्मकाण्डीय अनुष्ठान हो रहा है ! उस मध्य मैंने भिन्न पण्डितोंद्वारा पूजन कराते समय अज्ञानतावश कुछ चूकें करते पाया तो उसे मैं समष्टि हितार्थ आपसे साझा कर रही हूं | हमारे लेखोंके पाठकमें सम्पूर्ण भारतके अनेक ब्राह्मणगण हैं और ब्राह्मणका कर्मकाण्डका सम्बन्ध कितना प्रगाढ है, यह बतानेकी आवश्कता नहीं है, सच तो यह है कि ब्राहमण है तो कर्मकाण्ड है ! मैंने कर्मकाण्डकी साधना कभी की नहीं थी ! बाल्यकालसे ही ज्ञानकाण्डमें ही मेरी अधिक रुचि थी यद्यपि ब्राह्मण कुलमें जन्मके कारण अपने पिताजी और माताजीको कर्मकांड करते देखा था क्योंकि आज भी मिथिलांचलके लोगोंमें कर्मकाण्डके संस्कार प्रगाढ है ! अनुष्ठान करते समय मैं सीखनेकी दृष्टिसे भी कई बार बैठती हूं, यद्यपि अनेक बार मेरा स्वास्थ्य मेरा साथ नहीं देता है अर्थात मैं मात्र पण्डितोंकी चूकें नहीं निकालती हूं स्वयं भी सभी पंडित बन्धुओंसे सीखनेका प्रयास कर रही हूं; किन्तु पूजनके मध्य जो विशेष बातें या चूकें होती हैं, मैं उसे लिखकर रख लेती हूं और जब देखती हूं कि वही चूकें और भी पंडित कर रहे हैं तब मुझे लगा कि इस सम्बन्धमें भी समाज प्रबोधन करना अति आवश्यक है ! ब्राह्मण वर्ग विशेषकर पुरोहित वर्ग समष्टि कार्य कराते हैं इसलिए उनकी चूकें समष्टिपर व्यापक प्रभाव डालती हैं; इसलिए उसे बताना एवं समय रहते सुधारना अति आवश्यक होता है ! वैसे आनंदकी बात यह है कि अभी तक जो भी पुरोहित वर्ग मुझसे किसी अनुष्ठानके मध्यसे संपर्कमें आये तो मैंने उन्हें उनकी चूकें जब भी बताई है तो उन्होंने उसे सहजतासे स्वीकार किया और अगली बार जब मैं मिली तो उन्होंने उसमें सुधार कर लिया है, ऐसा मैंने पाया | इसलिए इसे अब अपने लेखनसे आपसे साझा कर रही हूं जिससे यदि हमारे कुछ और बंधुओंसे ऐसी चूकें हो रही हों तो वे उसमें आवश्यक सुधार करें ! मैंने पाया है कि अधिकांश लोगोंके पास बहुत मूल्यके बोन-चाइनाकी बर्तनें होती हैं; किन्तु पूजा हेतु पीतलके पात्र नहीं होते हैं ! आप सभी हिन्दू बंधुओंसे अनुरोध है कि अपने घरमें व्रत- त्यौहारके समय पूजाके एक-दो पात्र क्रय करनेका निर्णय लें, इससे पूजा हेतु आवश्यक पात्र आपके पास थोडे समयमें ही हो जायेगा ! पूजा करते समय पूजन साहित्य, पात्र एवं सामग्रीके सात्त्विक होनेपर उस स्थानपर देवत्व त्वरित आता है ! चूंकि हिन्दुओंके पास पूजाके लिए पात्र नहीं होता तो पंडितजी जब पूजन सामग्री लिखाते हैं तो उस सूचीमें मैंने पाया कि वे पत्तल और दोने लिखवा देते हैं | वे भी क्या करेंगे ? किन्तु मैंने यह देखा है कि अनेक बार कुछ लोग पण्डितोंको ही पूजन सामग्री लाने हेतु कह देते हैं, जैसे अभी हमने भी कनाडासे हमारे एक साधकका पुत्र अपनी माताजीकाका श्राद्ध करने आया था तो मैंने भी पंडितजी तो कहा था कि वे ही श्राद्ध कर्म हेतु सर्व सामग्रीकी व्यवस्था कर लें ! तो मैंने पाया कि उन्होंने एल्युमीनियमके फॉयलवाले दोने और पत्तल लाए थे ! तब मैंने उन्हें बताया कि ये तामसिक होते हैं; अतः पत्तोंके पत्तल और दोने उपयोगमें लाने चाहिए ! वे पंडितजी भी बहुत विनम्र थे, उन्होंने अगले दिवस मेरे बताये अनुसार सब परिवर्तन किया और कहा कि वे उसे और लोगोंको भी बताएंगे | आजसे कुछ समय पहले तक पत्तलका चलन था और यह एक फलता-फूलता कुटीर उद्योग था जिसे आज वातावरणको और स्वास्थ्यको हानि पहुंचानेवाले थेर्मोकोलके व एल्युमीनियमके फॉयलवाले दोने और पत्तल उपयोगमें लेने लगे हैं ! आपके कृत्य किसीकी उपजीविका तो नहीं उजाड रही है, वातवरणको प्रदूषित तो नहीं कर रही है न, इसका भी कृपया सभी ध्यान रखें | मुझे बहुत आश्चर्य हुआ जब इन्दौरमें और ओमकरेश्वरमें पूजाकी दूकानोंपर पत्तोंवाले पत्तल और दोने दोनों ही सरलतासे नहीं मिल पाए !
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