अधर्म चाहे वह इस जन्म का हो या पिछले किसी भी जन्मका, वह ही हमारे अधिकांश दुःखोंका कारण है; अतः उन दुःखोंके निराकरण हेतु धर्माचरण और योग्य साधना करें ! एक सरल सा समीकरण जान लें, जितना अधिक आप वैदिक सनातन धर्मसे दूर जाएंगे, उतना अधिक आपका जीवन क्लेशप्रद होगा और जितनी अधिक आप योग्य प्रकारसे साधना कर आध्यात्मिक जीवन व्यतीत करेंगे, आपका जीवन सन्तोषी और आनन्दी होगा; अतः आधुनिकीकरणकी अन्धी दौडमें पाश्चात्य संस्कृतिका अनुकरण न करें ! इससे आपको निकट भविष्यमें अवश्य कष्ट होगा । ध्यान रहे ! सनातन धर्मके अतिरिक्त विश्वकी कोई भी संस्कृति, सभ्यता और धर्म सत्त्व गुण आधारित नहीं है ! सनातन धर्मके सिद्धान्त अनुसार अध्यात्मशास्त्रको समझकर साधना करें ! इससे आपके कष्ट तो अल्प होंगे ही, प्रारब्ध अनुसार जो कष्ट आपको भोगने हैं, उन्हें भी सहन करनेकी शक्ति मिलेगी ! ‘सुखस्य मूल: धर्म:’ अर्थात यदि हम धर्मपथके पथिक हैं तो हम सुखी होंगे । धर्म मात्र एक ही है और वह है सनातन धर्म, शेष सभी पन्थ हैं ! धर्म, ईश्वर निर्मित होता है और पन्थ मानव निर्मित । यह धर्म और पन्थमें मुख्य भेद है ! -तनुजा ठाकुर (१३.३.२०१३ )
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