पतिका धर्म !


पतिको हमारे हिन्दू धर्ममें ‘स्वामी’ भी कहते हैं । स्वामीका बहुत ही व्यापक अर्थ होता है; किन्तु आजकलके पतिमें ‘अर्थ’ और ‘काम’ हावी होनेके कारण एवं ‘धर्म’ व ‘मोक्ष’, ये पुरुषार्थ उपेक्षित करनेके कारण स्वामीके गुणोंमें बहुत कमी आई है ।
     स्वामी अर्थात जो अपने संरक्षणमें आई स्त्रीका योग्य प्रकारसे पालन-पोषण करते हुए, उससे आध्यात्मिक मार्ग प्रशस्त करे ! धर्मप्रसारके कारण मेरा अनेक लोगोंसे सम्पर्क होता रहता है; किन्तु एक बात जो मैंने पाई है कि धर्मशिक्षणके अभावमें आजके पुरुषोंमें स्वामीके गुण बहुत ही कम दिखाई देते हैं । जैसे एक बार एक घरकी स्त्रीने कहा कि मैं बहुत अस्वस्थ रहती हूं । मैंने कहा, “आपके अस्वस्थ होनेके पीछे कारण आध्यात्मिक नहीं, वरन शारीरिक है ।” तो वे बहुत व्यथित होकर कहने लगीं कि क्या करूं ?, मेरी निद्रा पूरी ही नहीं होती है, मेरे पति संध्या सात बजे कार्यालयसे आनेके पश्चात चाय पी लेते हैं और ऐसेमें वे दस बजे रात्रिका भोजन ग्रहण करते हैं तो सब कुछ समटते-समटते मुझे बारह बज जाते हैं और उसके पश्चात भी वे बिछावनपर भ्रमणभाष (मोबाइलपर) कुछ न कुछ देखते रहते हैं, उनके जगे होनेके कारण मैं भी नहीं सो पाती हूं और प्रातः मुझे सबके लिए अल्पाहार बनानेके लिए उठना ही पडता है; ऐसेमें मेरी निद्रा पूरी नहीं होती है, इस कारण मुझे सारा दिन थकावट रहती है । मैं अपनी यह समस्या इन्हें अनेक बार बता चुकी हूं; किन्तु ये मेरी सुनते नहीं है; अतः अब क्लेश न हो, इसलिए मैं इसे सहते रहती हूं । एक महत्त्वपूर्ण बात ध्यान रखें ! सोनेके दो घण्टे पूर्व और रात्रि नौ बजेसे पूर्व हमें रात्रिका भोजन अवश्य ही ग्रहण कर लेना चाहिए, ऐसा आयुर्वेद कहता है ।
        पतिका धर्म है कि वह अपनी पत्नीके स्वास्थ्यका ध्यान रखे, यदि उन्हें कुछ बहुत ही आवश्यक कार्य करना हो तो ही रात्रिमें इस प्रकारके कृत्य करें ! दूसरोंका विचार अर्थात मेरे संरक्षणमें जो है, उसका विचार करना यह स्वामीका गुण होता है, यदि यह गुण न हो और उसके कारण अगले व्यक्तिको जब कष्ट होगा तो क्या वह आपके प्रति स्नेह रखेगा या आपसे मार्गदर्शन लेगा ?, किंचित सोचे !
      दूसरी बात यह है कि रात्रि ग्यारहसे तीन बजेका जो काल होता है, वह शरीरके आन्तरिक अंगोंद्वारा विषाक्त पदार्थोंको निकालनेका काल होता है, यदि उस समय कोई व्यक्ति जागता रहता है तो उसे आज नहीं तो कल निश्चित ही शारीरक कष्ट होगा । आध्यात्मिक दृष्टिसे भी यह काल रज-तमका काल होता है एवं इस कालमें जागनेसे अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट होता है; इसलिए इसकालमें प्रकृति विरुद्ध आचरण नहीं करना चाहिए । वस्तुत: यह ज्ञान पतिद्वारा पत्नीको दिया जाना चाहिए; किन्तु ऐसा नहीं होता है । ऐसी सम्भावना है कि उस व्यक्तिके पास कुछ अतिरिक्त कार्य हो, जो वह दिनमें नहीं कर सकता, तो उसे वह रातमें करता हो, ऐसेमें वे दो पर्यायका विचार कर सकते हैं । प्रथम अति आवश्यक कार्य हो वह कक्षसे बाहर जाकर बैठकमें अपनी सेवा समाप्त कर सोने आ जाए । दूसरा पर्याय है कि वह प्रातः चार बजे उठकर अपना अतिरिक्त कार्य या सेवा पूर्ण करे ! मेरे कहनेका अर्थ है कि पत्नीको समस्या हो रही है तो उसका त्वरित समाधान निकालना, यह स्वामीका गुण होना चाहिए ।
     वैसे ही आजकल अनेक बार बहुतसी स्त्रियां मुझसे कहती हैं कि उनके पति न बच्चोंसे संवाद करते हैं और न ही उनसे करते हैं, कार्यालयसे घर आनेके पश्चात वे ‘इण्टरनेट’में कुछ न कुछ करते रहते हैं । कुछ भावनाप्रधान स्त्रियोंको अपने पतिके इस वर्तनके कारण अवसाद हो गया है ! एकने तो मुझसे कहा हम एक ही कक्षमें रहते हैं, एक ही बिछावनपर सोते हैं; किन्तु आज तीन वर्ष हो गए हैं, हम एक ही छतके नीचे ऐसे रह रहे हैं, जैसे दो अपरिचित हों । हमारे मध्य एक माहमें एक बार या दो बार ही बात हो पाती है । हमें समझमें नहीं आता है कि हम क्या करें ? दुःख मुझे तब होता है, जब यह परिवाद (शिकायत) अनेक साधक स्त्रियां अपने साधक पतिके विषयमें करती हैं । ऐसे पुरुषोंने स्वयंको साधक नहीं समझना चाहिए ।
       एक बातका सभी दम्पति ध्यान रखें कि पति-पत्नीके सम्बन्धमें प्रत्येक क्षण तीव्र लेन-देन होता है, ऐसेमें उसे भोगकर समाप्त करना चाहिए । अन्यायकर नूतन कर्मफल निर्माण नहीं करना चाहिए । इसलिए यदि आपके साथ कोई ऐसा वर्तन करेगा तो आपको कैसा लगेगा ?, इसका विचारकर ही वर्तन करना चाहिए अन्यथा इस जन्ममें पति बनकर आप मनमानी करेंगे तो अगले जन्ममें आपकी पत्नी आपका पति बनकर करेंगी । यह क्रम टूटे; इसलिए धर्म अधिष्ठित आचरण करें एवं स्वयंमें एक आदर्श पुरुषके गुण विकिसित करें ! पुरुषका सबसे आवश्यक गुण है ‘इन्द्रिय निग्रह’ ।
   हिन्दू धर्ममें पतिको परमेश्वर माना गया है; किन्तु पति विषय आसक्त हो, मद्यपान या कोई अन्य व्यसन करता हो, धर्मपालन या साधना न करता हो, भ्रष्टाचारसे अपने घरमें धन लाता हो, क्रोधी, अहंकारी और स्वार्थी हो तो स्त्री ऐसे पुरुषको परमेश्वर कैसे मान सकती है ?, इसलिए पुरुषो ! स्त्री-पुरुषके मध्य हमारी संस्कृति अनुसार, यह सुन्दर एवं आध्यात्मिक सम्बन्ध स्थापित करने हेतु साधक बनें !


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