पत्नीमें गृहलक्ष्मीके गुण आवश्यक !


जैसाकि आपको बताया है, आजकलके ‘पति’में ‘स्वामी’के गुणोंका अभाव पाया जाता है, वैसे ही स्त्रियोंमें भी गृहलक्ष्मीके गुणोंका अभाव देखा गया है । गृहलक्ष्मीका अर्थ ही घरकी लक्ष्मी अर्थात जो घरमें अपने धर्म अधिष्ठित आचरणके कारण सुख-शान्ति और ऐश्वर्यको सहज ही आकर्षित कर उसे मंदिर जैसा पवित्र व साधना स्थल  बनाए रखती है । किन्तु आजकलकी स्त्रियोंमें जो दैवी गुण होने चाहिए, जिससे वे देवीके तत्त्वको आकृष्ट कर सके उसका भी अभाव देखा गया है, वह कैसे ?, यह बताती हूं । आजकलकी स्त्रियां आधुनिकताके कारण एक ब्याहताद्वारा पहने जानेवाले सारे सौभाग्य अलंकारोंका त्यागकर, एक विधवा समान रहती हैं । ब्याहता स्त्रीद्वारा धारण किए जानेवाले अलंकारोंको, सौभाग्य अलंकार कहा गया है; किन्तु यदि वह आधुनिक बननेके क्रममें उन्हें ही त्याग दे तो सौभाग्य आएगा कहांसे ?
       आलस्यके कारण आजकी अधिकांश स्त्रियोंका रसोईघर बहुत ही अस्वच्छ रहता है । मात्र बाहर-बाहरकी स्वच्छ्ता करवाकर या करके शेष समय वे या तो दूरदर्शनपर कार्यक्रम देखती हैं या   व्हाट्सऐप (whatsapp), फेसबुक इत्यादिपर अपना समय व्यर्थ करती हैं । मैं भारत ही नहीं, विदेशोंमें भी गई हूं और अनेक लोगोंके घरोंपर धर्मप्रसारके मध्य रही हूं । उनके भोजन बनानेके पात्रों, उनके रसोईघरकी कपाटिका (अलमारी), उनके प्रशीतक (फ्रीज) खोलनेके पश्चात उनके यहां भोजन करनेकी इच्छा ही नहीं होती है । उसमें भोज्य सामग्री रखनेवाले पात्रमें या तो आपको बहुत पुरानी वस्तुएं मिलेंगी या वह बहुत ही अस्वच्छ या अव्यवस्थित होगा । पवित्रतासे जैसे आजकी स्त्रियोंका नाता ही टूट गया है । प्रातः सूर्योदयके पश्चात भी सोये रहना, बिना नहाए भोजन बनाना, मूत्र त्यागके पश्चात पांव न धोना, बासी भोजन खाना व खिलाना एवं अतिथि आ जाए तो भृकुटीका तन जाना, यह सब सामान्य बातें है । जूठन इत्यादिका किंचित भी ध्यान न रखना, जिस कार्यमें थोडा भी शारीरिक श्रम लगे, उसे न करना, यह सब आज घर-घरमें देखनेको आपको मिलेगा ।
एक घरमें धर्मप्रसारके मध्य जब मैं कुछ दिवस रुकी थी तो मैंने देखा कि उस घरकी स्त्रीने आठ बजे उठनेके पश्चात सबसे पहले मुख धावनकर चाय और रोटी खाना आरम्भ कर दी । उसे खानेके पश्चात उन्होंने भगवानकी पूजा बिना नहाये ही कर दी । मैंने जब पूछा कि आपने यह सब ‘उल्टा-पुल्टा’ क्यों किया ?, तो वे कहने लगीं बिना चाय पीए तो मुझे शौच होता नहीं है और चाय पीनेसे अम्लपित्त (एसिडिटी) हो जाता है; इसलिए ऐसा करती हूं । मैंने कहा आप प्रातः सूर्योदयसे पूर्व उठें, बासी जलका प्राशन कर थोडी देर भ्रमणके लिए जाएं या योगासन व प्राणायाम करें तो आपका पेट स्वतः ही स्वच्छ हो जाएगा । और चायसे कष्ट होता है तो उस व्यसनको त्याग दें तो उन्होंने कहा यह यह सब मुझसे नहीं होता है । मैंने कहा, “तो ठीक है कमसे कम पूजा तो नहा-धोकर करें,”  तो उन्होंने कहा इतनी ठण्डमें प्रतिदिन स्नान नहीं कर सकती हूं और भगवानपर यह सब लग्गो नहीं होता है । इस स्त्रीके पति एक चिकित्सक होते हुए भी उन्हें बहुत अधिक आर्थिक कष्ट था । अब जब घरकी स्त्रीमें ऐसे दुर्गुण हों तो लक्ष्मी आए भी कैसे ? अर्थात आजकी स्त्री स्वयंमें दैवी गुणोंको आत्मसात करती नहीं है; किन्तु यह अवश्य ही चाहती हैं कि उनके पति धन अर्जितकर उन्हें संसारके सब सुख-साधन दें ! तो स्त्रियो, गृहस्थीकी गाडी सुव्यवस्थित चले, इस हेतु स्वयंमें भी गृहलक्ष्मीके गुण आत्मसात करें !
  धर्मप्रसारके मध्य मेरे लिए सबसे बडी चुनौती होती है अशुद्ध एवं अपवित्र हाथोंसे बना हुआ भोजन करना और इसे करते हुए उनकी स्तुतिकर उनसे मित्रता करना; क्योंकि आजकी स्त्रियोंमें अहंकारका प्रमाण इतना अधिक है कि यदि आपने उन्हें उनकी चूकें बता दीं तो आपको भोजन नहीं मिलनेवाला है ! अहंकारका प्रमाण आजकी स्त्रियोंमें इतना अधिक है कि उन्हें पतिके अतिरिक्त ससुराल पक्षके कोई भी व्यक्ति फूटी आंख नहीं सुहाते हैं । और तो और मैंने देखा है कि अनेक बार स्त्रियोंको उनेक पतिका आध्यात्मिक स्तर बता दिया जाए और यदि वह उनके आध्यात्मिक स्तरसे अधिक है, तो उन्हें यह भी स्वीकार नहीं होता है एवं वे अपने पतिको साधना पथसे दूर करके ही श्वास लेती हैं; इसके मेरे पास कुछ उदहारण भी हैं ! इसलिए मैंने सोचा है कि उपासनाका गुरुकुल खुलेगा तो उसमें कन्या गुरुकुल भी रहेगा, जिससे स्त्रियोंमें स्त्री सुलभ गुणोंको आत्मसात कराया जा सके ।


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