पितरोंके छायाचित्र घरमें क्यों नहीं रखना चाहिए ? (भाग – ९)


आपको अबतकके लेखोंमें पितरोंके छायाचित्र क्यों नहीं लगाने चाहिए ?, इसका शास्त्र बताया है । यह मैं इतनी दृढतासे कैसे बता पाती हूं; क्योंकि वर्ष १९९९ से ही मैंने धर्मप्रसारके मध्य इसकी अनेक अनुभूतियां ईश्वर प्रदत्त जाग्रत सूक्ष्म इन्द्रियोंसे ली हैं या यह कहना अधिक उचित होगा कि आगे मुझे समाजको धर्मके इस पक्षमें जाग्रति करनी होगी; इसलिए ईश्वरने मुझे विशेष रूपसे दी है । अभी भी जो ये लेख लिख रही हूं, वह संगणकमें ‘वर्ड फाइल’में त्वरित टंकित (टाइप) नहीं हो रहा है और उसमें बहुत देर लगी है ; इसलिए ‘Whatsapp’को संगणकसे संयोजितकर उसपर टंकितकर लिख रही हूं । यह भी अनेक बार उड जाता है अर्थात कभी ‘Whatsapp not responding’ ऐसा सन्देश आता है तो कभी अपने आप टंकित विषय लुप्त हो जाता है या अटक जाता है और न ही वह ‘कॉपी’ होता है और न ‘पोस्ट’ होता है । सूक्ष्म जगतकी गूढ बातोंको साझा करने हेतु नित्य मुझे कुछ नूतन अडचनोंका एवं उसपर उपाय सोचने पडते हैं, अभी भी मैं इसमें चार पंक्तियां टंकित करती हूं एवं पुनः ‘डॉक् फाइल’में संरक्षित (सेव) करती हूं, जिससे वह उड न जाए और इसे करते समय मुझे शारीरिक पीडा होना, हमारे संगणकपर आक्रमण होना इसकारण प्रसार कार्यमें बाधा होना, इस कारण आर्थिक रूपसे अनावश्यक व्ययका बढ जाना है, यह सब सामान्य बात है । दो दिनसे सत्संगको सम्पादित (एडिट) करनेवाला संगणक स्वतः ही विकृत हो गया है अर्थात वे मुझे, हमारे प्रसार साहित्यको ऐसी बातें साझा करने हेतु कष्ट देते रहते हैं, अब मैं इसकी अभ्यस्त हो गई हूं !
अब आपको एक प्रसंग बताती हूं, जिससे आपको ज्ञात होगा कि पितरोंके छायाचित्र घरमें या कार्यालयमें क्यों नहीं रखने चाहिए ? जून २०११ में मैं उत्तर प्रदेशके एक सुप्रसिद्ध राजनेताके घर प्रवचन हेतु गई थी । उनकी पुत्रीने आगरामें मेरा प्रवचन सुना था और उनकी इच्छा थी कि उनके मायके पक्षके लोग भी यह सुनें !  उन्होंने मुझे यह नहीं बताया था कि उनके पिताजी एक राष्ट्रीय स्तरके राजनेता हैं । मैं सामान्यतः ऐसे लोगोंसे दूरी बनाए रखती हूं; क्योंकि आज ९८% ऐसे लोग राजसिक और तामसिक तो होते ही हैं उनकी स्वार्थी वृत्ति मुझे जमती नहीं है । उनकी पुत्रीने कहा था कि हमारे पिताजी अपने घरमें पूरे गांवके लोगोंके लिए आपका प्रवचन रखना चाहते हैं और हमारे गांवके २००-२५० लोग हमारे घरमें सहज ही आ जाएंगे, हमारा गांववाला पैतृक घर बहुत बडा है । उस समय मैं धर्मजाग्रति हेतु सम्पूर्ण भारतमें भ्रमणकर प्रवचन लिया करती थी । इसलिए उनके मायके गई । वहां जाकर पता चला कि इनके पिताजी अपने क्षेत्रके ही नहीं सम्पूर्ण भारतके एक सुप्रसिद्ध नेता हैं और वे राजपरिवारसे सम्बन्ध रखते हैं । उनका घर एक छोटे महल जैसा ही था । घरमें कुल ३५ लोग थे और १८ सेवक थे ! उन्होंने मेरे लिए व मेरे प्रवचनके लिए सभी व्यवस्था बहुत अच्छेसे की थी । जिस दिवस मैं पहुंची तो उसी दिवस रात्रिमें उनके यहां प्रवचन था और लगभग २५० लोग उसमें उपस्थित थे । प्रवचनसे पूर्व उस घरकी सभी स्त्रियां (देवरानियां, जेठानियां, ननदें ) सब मुझे एक कक्षमें लेकर गईं और वह कक्ष अतिथि कक्ष नहीं था; अपितु उनकी बुआका कक्ष था जो स्वर्गवासी हो चुकी थीं; क्योंकि उनके अतिथि कक्षका नवीनीकरण चल रहा था ऐसा उन्होंने बताया । उस कक्षमें जाते ही मेरा सिर बहुत भारी हो गया । अब इसे ईश्वरीय लीला कहें या संजोग ? मैंने पाया है अनेक बार घरके जिस कक्षमें सबसे अधिक कष्ट होता है, मुझे वह ही रहने हेतु दिया जाता है । कक्ष छोटासा था; किन्तु स्वच्छ और सुन्दर था । मैंने चारों ओर दृष्टि घुमाकर देखना चाहा कि इतनी नकारात्मक शक्ति कहांसे आ रही है तो मुझे एक बडा छायाचित्र दिखा । उसमें ३० से ३५ लोग थे और वे सब उसी परिवारके लग रहे थे  । जैसे ही मैंने कुछ क्षण उस छायाचित्रपर ध्यान केन्द्रित किया, मुझे वहां कुछ नरमुण्ड दिखे और कुछ क्षणोंमें उनके छोटे-छोटे नेत्रोंसे लाल रंगकी शक्ति निकलती दिखी । मैं समझ गई इसमेंसे अधिकांश लोगोंकी मृत्यु हो चुकी है । मैंने वहां उपस्थित स्त्रियोंसे सहज होकर पूछा यह चित्र कितना पुराना है ?, तो वे बोलीं कि यही कोई ३०-३५ वर्ष पहलेका होगा । मैंने पूछा, “सब जीवित हैं क्या ?” तो वे बोलीं, ” नहीं नहीं और वे गिनकर बताने लगीं, इसमें आठ लोग जीवित हैं और शेष परलोक सिधार चुक हैं ।” अर्थात मुझे जो दिख रहा था वह सही ही था । अब ऐसे कक्षमें सोना कितना कठिन होगा ?, सोचें ! वह छायाचित्र बहुत बडा था, ४ फुट x तीन फुटका होगा और उसका फ्रेम भी बहुत बडा और भारी था, वह लकडीका बना हुआ और चारों ओर शिल्पकारी की हुई थी । मैंने उनके घर रात्रिमें प्रवचन लिया और प्रातः सब लोग उस कक्षमें मेरी बातें सुनने हेतु एकत्रित हो गए । मैं बिछावनपर बैठकर अपने ‘लैपटॉप’पर सेवाकर रही थी और उनसे बातें भी कर रही थी । उस समय उस कक्षमें आठ लोग होंगे । बात करते करते एक स्त्री चिल्लाते हुए बोली, “आप हट जाएं !” किन्तु तबतक वह छायाचित्र मेरे कन्धेके एक इंच पीछे, मेरे बिछावनके पीछे गिर चुका था । वह तो गुरुकृपा थी कि वह मुझपर नहीं गिरा अन्यथा मेरा अंग-भंग होना निश्चित ही था । उस स्त्रीने कहा, यह आपके कन्धेपर ही गिरनेवाला था; किन्तु मैंने देखा वह गिरते समय जैसे अपने आप थोडा हट गया । वह छायाचित्र दो मोटी-मोटी कीलोंसे टंगा हुआ था और वह गिर ही नहीं सकता था, ऐसा उस घरके लोगोंका कहना था और वह मेरे दाहिने कन्धेपर गिरनेवाला था, जिससे मैं लेखन इत्यादि न कर सकूं । अभी भी जबसे लेखमाला आरम्भ की है, मेरे दाहिने हाथमें पिछले एक सप्ताहसे बहुत वेदना है । रात्रिमें मर्दन (मालिश) करवाकर सोती हूं और कुछ भी इससे उठा नहीं सकती हूं । उस घरकी स्त्रियोंके लिए यह बहुत ही आश्चर्यका विषय था । वह राजवाडा था तो स्वाभाविक है कि उनके पूर्वजोंके छायाचित्र होंगे; किन्तु वह सर्वत्र लगे हुए थे; इसलिए मैंने प्रवचनमें हलका संकेत ही दिया था; किन्तु उनके पितर चाहते थे कि मैं उन्हें सब बताऊं । अनेक बार लोगोंके लिए यह संवेदनशील विषय होता है; अतः कभी-कभी मुझे परिस्थिति देखकर सब बताना पडता है । जब मैंने उन्हें छायाचित्र गिरनेका कारण बताया तो उन्होंने उस छायाचित्रोंमें जो व्यक्ति थे, उनकी बातें बतानी आरम्भकर दीं और ज्ञात हुआ कि उनमें अधिकांश लोगोंको अत्यधिक कष्ट था एवं कुछ लोगोंकी अकाल मृत्यु भी हुई थी । मैंने उन्हें उनके सभी पितरोंके छायाचित्र, एक भिन्न कक्षमें रखने हेतु कहा । उन नेताजीने भी अपनी सारी रामकहानी बताते हुए कहा कि मैं तो देशके सर्वोच्च पदपर जाते-जाते रह गया और इसका उन्हें अत्यधिक दुःख है और इससे मैं अभीतक निकला नहीं पाया हूं । इस प्रसंगसे आपको कुछ बताना चाहती हूं जो निम्नलिखित हैं :-
१. इसे ईश्वरीय कृपा कहें या संजोग ?; किन्तु धर्मप्रसारके मध्य मेरा अनेक रजवाडोंसे सम्पर्क हुआ है और मैंने पाया है कि इनके घरोंमें वर्तमान कालमें तीव्र पितृदोष है । अभी आठ दिवस पूर्व भी एक राज घरानेके कुंवर हमारे पास आए थे । उनकी भी स्थिति ऐसी ही थी । इन सबके पीछे दो कारण रहे हैं, एक तो इनके पुरुषवर्गद्वारा वर्ण अधिष्ठित धर्मपालन न करना और दूसरा पिछले सहस्रों वर्षोंमें इनके पूर्वजोंकी, बाह्य आक्रान्ताओंसे हमारे रक्षण हेतु, युद्धमें अकाल मृत्युको प्राप्त होना । कालानुसार २०२५ तक पिछले ५००० वर्षोंसे जो भी अतृप्त लिंगदेह समूह है, उसे इस कालमें कार्यरत अवतारी तत्त्वद्वारा गति मिलेगी; इसलिए भी आज अनेक घरोंमें पितृदोषका प्रमाण उभरकर आया है ।
२. उस घरके कुछ पूर्वज चाहते थे कि उन्हें गति मिले; इसलिए उन्होंने मुझे वहां बुलवाया एवं कुछ पूर्वजोंको मेरा उनके यहां जाना अच्छा नहीं लगा और उन्होंने मात्र छायाचित्र ही नहीं गिराया; अपितु मेरे पैसे भी चोरी करवाए । छायाचित्रके गिरनेके पश्चात मैं सब शास्त्र बताकर, कुछ लोगोंके घर, उनके कहनेपर मिलने गई । उस समय मुझे ५०००० ₹ की आवश्यकता थी; क्योंकि मुझे कुछ ध्वनिचक्रिकाएं (Cd’s) निकालनी थीं, जिन्हें धर्मयात्राके मध्य प्रवचनके पश्चात लोगोंमें वितरित की जा सकें । आजके हिन्दू तो आप जानते ही हैं कैसे हैं ? त्याग करनेमें उन्हें बहुत ही कष्ट होता है और धर्मके लिए तो वह और भी करना नहीं चाहता है । अपने लिए २००० की ‘जींस’ ले सकता है; किन्तु धर्मके ५०० रुपएका त्याग उससे नहीं होता है । ऐसी स्थितिमें धर्मकार्य हेतु मैंने ३०००० ₹ एकत्रित किए थे । रात्रिमें मैं जब आई तो देखा कि मेरा ‘सूटकेस’ जिस कूट क्रमांकसे (लॉक नंबरसे) खुलता है, वही लगा हुआ है और मुझे ध्यान है, मैं उसे व्यवस्थित उसीसे बन्द करके गई थी । जब खोलकर तो देखा पाया कि १५००० ₹ किसीने चोरीकर लिए थे ।
अगले दिवस अल्पाहारके समय उस घरकी स्त्रियां आपसमें कह रही थीं कि आजकलके सेवकोंपर विश्वास नहींकर सकते हैं; इसलिए मैं तो अपने कक्षमें बिना मेरी अनुमतिके किसीको प्रवेश नहीं करने देती हूं । उसके पश्चात वे बताने लगी कि कैसे सेवकगण उनकी मूल्यावन वस्तुओंको त्वरित चोरीकर लेते हैं ? यह सब मेरे बिना कुछ बताए ही वे बोल रही थीं । जिस घरमें पितृदोष अधिक होता है उस घरमें भिन्न माध्यमोंमें आर्थिक हानि होना स्वाभाविक है और मैं उन्हें यह शास्त्र बताती हूं तो मुझे कैसे छोड सकते हैं ? अनिष्ट शक्तियां मुझे शारीरिक और आर्थिक हानि देती ही रहती हैं और धर्मप्रसारमें यह होता ही रहता है और कारण तो आपको पता ही चल गया होगा; किन्तु हम भी हठी होते हैं, बिना डिगे अपना कर्म करते रहते हैं । – (पू.) तनुजा ठाकुर


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