राजस्थानके कोटा जनपदके श्री वैभव अग्रवालने पितरोंके छायाचित्रसे सम्बन्धित एक प्रश्न पूछा है, उनका प्रश्न इस प्रकार है - आपके लेखोंको पढनेके पश्चात यह तो समझमें आ गया है कि पूर्वजोंके छायाचित्र घरमें नहीं रखने चाहिए; परन्तु मेरे पास मेरे स्वर्गवासी दादा-दादीके छायाचित्र बैठक कक्षमें हैं । ऐसेमें यदि उन्हें बैठक कक्षसे हटा दें तो उन्हें कहां रखें और उन छायाचित्रोंका क्या करें ?


राजस्थानके कोटा जनपदके श्री वैभव अग्रवालने पितरोंके छायाचित्रसे सम्बन्धित एक प्रश्न पूछा है, उनका प्रश्न इस प्रकार है – आपके लेखोंको पढनेके पश्चात यह तो समझमें आ गया है कि पूर्वजोंके छायाचित्र घरमें नहीं रखने चाहिए; परन्तु मेरे पास मेरे स्वर्गवासी दादा-दादीके छायाचित्र बैठक कक्षमें हैं । ऐसेमें यदि उन्हें बैठक कक्षसे हटा दें तो उन्हें कहां रखें और उन छायाचित्रोंका क्या करें ?
श्री अग्रवालके इस प्रश्नका उत्तर इस प्रकार है – आपके बैठक कक्षमें रखे पितरोंके छायाचित्रोंका सर्वोत्तम उपाय यह होगा कि उन्हें ‘स्कैन’ कर अपने संगणकमें (कम्प्यूटरमें) संरक्षित कर रख लें एवं उनके छायाचित्रोंंको स्वच्छ एवं बहते जलमें विसर्जित कर दें, जिससे यदि कभी देखनेकी इच्छा हुई तो देख सकते हैं या अगली पीढीको भी दिखा सकते हैं ।
यदि आपकी मानसिक सिद्धता (तैयारी) जलमें विसर्जित करनेकी नहीं है तो उनके चित्रोंको एक श्वेत वस्त्रमें लपेट कर उनके पीछे दत्तात्रेय देवताका या भगवान शिवका छायाचित्र चिपकाकर, कपाटिकामें अर्थात (अलमारीमें) रख दें, उन्हें श्राद्धवाले दिन निकाल सकते हैं एवं उनके ऊपर माला इत्यादि चढा सकते हैं, किन्तु श्राद्धकर्मके पश्चात पुनः तुरन्त छायाचित्रोंको लपेटकर कपाटिकामें रख दें ।
अर्थात यदि आप पितरोंके छायाचित्रोंंको रखना ही चाहते हैं तो उसे दृष्टिके सामने न रखें, अपितु उसे कपाटिकामें (अलमारीमें) रखें । अंग्रेजीके एक कहावत है, ‘आउट ऑफ साईट, आउट ऑफ माइंड’ अर्थात दृष्टिसे अपने पितरोंके छायाचित्रोंंको दूर रखनेसे उनका स्मरण भी न्यून होगा, इससे उस लिंगदेहको आगेकी यात्रा करना सरल होगा ! ध्यान रखें, हिन्दू धर्म पितरोंकी मृत्यु उपरान्तकी यात्राको सुलभ करने हेतु अनेक धार्मिक विधियोंका प्रतिपादन कर उनके प्रति कृतज्ञताका भाव रखना सिखाता है, उस जीवको आसक्तियोंमें बद्ध करना नहीं सिखाता; अतः प्रत्येक हिन्दूने धर्म शास्त्रोंका पालन कर अपना और अपने पितरोंका कल्याण करनेका प्रयास करना चाहिए, न कि भावनामें न बहकर, शास्त्र विरुद्ध कृति कर अपने पितरोंको अटका कर उन्हें कष्ट देना चाहिए ।



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