जो भी ब्राह्मण, श्राद्धविधि अन्तर्गत ब्राह्मणभोजन हेतु अपने यजमानोंके घर जाते हैं, उन्होंने यह ध्यान रखना चाहिए कि श्राद्धविधिके मध्य ब्राह्मण भोजनके समय यदि आप शास्त्रानुसार पितृस्थानपर बैठकर भोजन ग्रहण करते हैं तो उस समय यजमानके पूर्वजोंका मनोदेह, आपके मनोदेह एवं वासनादेहके माध्यमसे अपने रुचि अनुरूप भोजनकी इच्छाकी पूर्ति करते हैं; अतः श्राद्ध निमित्त भोजनपर जानेसे पूर्व कमसे कम २१ माला अपने गुरुमंत्र या ‘श्रीगुरुदेव दत्त’का मंत्रजप अवश्य करें, अन्यथा यदि आपकी साधना प्रगल्भ न हो तो ऐसेमें यजमानके अतृप्त पूर्वजोंका मन आपके स्वाभावदोषोंके माध्यमसे आपके अन्दर अपना स्थान बना सकती है । यह मैं इसीलिए बता रही हूं; क्योंकि मैंने देखा है कि आजकल अनेक जन्मब्राह्मण जो कर्मकाण्ड करते हैं, वे अपनी व्यष्टि साधनाके प्रति उतने सतर्क नहीं रहते हैं, ऐसेमें वे जो श्राद्ध अंतर्गत विधियां करते हैं उससे उन्हें भी आध्यात्मिक कष्ट होनेकी संभवानाएं रहती हैं, यह ध्यान रख, पितृपक्षके समय अपनी व्यष्टि साधनापर अधिक ध्यान दें; क्योंकि आज सर्वसामान्य हिन्दुओंको पूर्वकी अपेक्षा अधिक प्रमाणमें पितृदोष है और घरमें एक नहीं अपितु अनेकों पूर्वज अशान्त रहते हैं; इसीलिए ब्राह्मण भोजनको एक सूक्ष्म आध्यात्मिक अनुष्ठान समझकर, योग्य आचरण करें !
और हिन्दुओ ! ब्राह्मण भोजन कराते समय इस शास्त्रको जानकार श्राद्ध कर्म हेतु ब्राह्मणके प्रति कृतज्ञताका भाव रखें ! – तनुजा ठाकुर (७.९.२०१६)
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