आदि शंकराचार्य और मंडन मिश्र के मध्य सोलह दिनसे शास्त्रार्थ चल रहा था। मंडन मिश्र की पत्नी देवी भारती निर्णायक थीं। हार-जीतका निर्णय नहीं हो पा रहा था, तभी देवी भारतीको किसी आवश्यक कार्यसे बाहर जाना पड़ा। जानेके पूर्व उन्होंने दोनों विद्वानोंके गलेमें एक-एक माला डालते हुए कहा, मेरी अनुपस्थितिमें मेरा काम ये फूलमालाएं करेंगी। देवी भारती चली गई। शास्त्रार्थ यथावत चलता रहा। कुछ समय बाद जब वे अपना काम पूरा कर लौटीं, तो उन्होंने आदि शंकराचार्य और मंडन मिश्रको बारी-बारी से देखा, उनके गलेमें डाली गई फूलों की मालाकी स्थितिको परखा और अपना निर्णय सुना दिया। निर्णयके अनुसार आदि शंकराचार्यकी विजय हुई और उनके पति मंडन मिश्र पराजित हुए।
सभी आश्चर्यचकित थे कि उन्होंने किस आधारपर अपने पतिको पराजित घोषित किया। अंततः एक व्यक्तिने नम्रतापूर्वक पूछा, आप तो शास्त्रार्थके मध्य ही चली गई थीं। फिर लौटते ही आपने यह फैसला कैसे सुना दिया? देवी भारतीने उत्तर दिया, “जब विद्वान शास्त्रार्थमें पराजित होने लगता है तो वह क्रोधित हो जाता है। इसका प्रभाव उस व्यक्ति के साथ ही वहांके वातावरणपर भी होता है। मेरे पति मंडन मिश्रके गलेकी माला क्रोधके तापसे सूख गई, जबकि आदि शंकराचार्यकी मालाके फूल अभी भी ताजे हैं। इसीसे प्रकट होता है कि शंकराचार्यकी विजय हुई है।” देवी भारतीका फैसला सुनकर सभी उपस्थित व्यक्ति आश्चर्यचकित रह गए।
क्रोध एक दुर्गुण है उसे दूर करने हेतु प्रयास करना चाहिए ! प्रतिदिन जीतने भी प्रसंग होते हैं जहां हम क्रोधित होते हैं उसे एक अभ्यास पुस्तिका में लिखना चाहिए और क्रोध क्यों आया उसके लिए मेरे कौन से दोष उत्तरदायी थे इसका अंतर्मुख होकर विचार कर , दिन में पाँच बार अपने मन को कुछ मिनट नामजप कर स्थिर कर जिस भी प्रसंग में हम क्रोधित होते हैं उसमें हमारा आदर्श वर्तन किस प्रकार होना चाहिए यह स्वयंसूचना मन को देनी चाहिए | इससे हमारा मन प्रसंग आनेपर योग्य प्रकार से वर्तन करने लगता है |
एक प्रसंग के लिए पंद्रह दिन स्वयं सूचना देनी चाहिए | उसके पश्चात अपनी उस दोष की समीक्षा करनी चाहिए कि क्या क्रोध से संबन्धित मेरे दोष कम हुए क्या ? यदि कम हो गए तो दूसरे दोष
बारे में यह प्रक्रिया करना चाहिए |
स्वयंसूचना कैसे बनाना है इसका एक उदाहरण प्रसंग सह देखते हैं :
प्रसंग : छोटे भाई के बैठक में समय पर नहीं पहुँचने पर क्रोध आया
स्व्यमसूचना इस प्रकर दें : जब जब मेरा छोटा भाई बैठक में देर से पहुंचेगा और मैं क्रोधित होकर उससे बात करूंगा तब तब मुझे भान होगा कि बिना कारण जाने क्रोध करना अयोग्य है अतः वह जैसे ही बैठक में पहुंचेगा मैं उससे शांति से पहले उसके देर से पहुँचने का कारण पूछूंगा और उससे शांतिपूर्वक समय पर पहुँचने का महत्व बताऊंगा
किन किन परिस्थितियों में मुझे क्रोध आता है इसका अंतर्मुख होकर विश्लेषण कर उसकी व्याप्ति लिखकर रखना चाहिए जैसे
१. जब मन के अनुसार कार्य न हो
२. जब कोई व्यवस्थित न रहे
३. जब कोई सदैव आदेश दे
४. जब कोई बताए हुए समय में न पहुंचे इत्यादि
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