प्रेरक कथा – सफल वही होता है जो लक्ष्यका निर्धारणकर उसपर अडिग रहता है
एक समयकी बात है, एक निःसन्तान राजा था, वह वृद्ध हो चुका था और उसे राज्यके लिए एक योग्य उत्तराधिकारीकी चिन्ता सताने लगी थी । योग्य उत्तराधिकारीकी शोध हेतु राजाने पूरे राज्यमें ढिंढोरा पिटवाया कि अमुक दिन संध्याको जो मुझसे मिलने आएगा, उसे मैं अपने राज्यका एक भाग दूंगा । राजाके इस निर्णयसे राज्यके मन्त्रीने रोष जताते हुए राजासे कहा, “महाराज, आपसे मिलने तो बहुतसे व्यक्ति आएंगे और यदि सभीको उनका भाग देंगे तो राज्यके टुकडे-टुकडे हो जाएंगे । ऐसा अव्यावहारिक कार्य न करें !” राजाने मन्त्रीको आश्वस्त करते हुए कहा, ”मन्त्रीजी, आप चिन्ता न करें, देखते रहें, क्या होता है ?”
निश्चित दिन जब सबको मिलना था, राजभवनकी वाटिकामें राजाने एक विशाल मेलेका आयोजन किया । मेलेमें नाच-गाने और मद्यका प्रबन्ध था, खानेके लिए अनेक स्वादिष्ट पदार्थ थे । मेलेमें कई प्रकारकी क्रीडाएं भी हो रही थीं ।
राजासे मिलने आनेवाले अनेक लोग नाच-गानेमें अटक गए, कुछ सुरा-सुन्दरीमें, अनेक लोग आश्चर्यजनक क्रीडामें लिप्त हो गए तो कुछ खाने-पीने, भ्रमणके आनन्दमें डूब गए । इस भांति समय बीतने लगा; परन्तु इन सभीके मध्य एक व्यक्ति ऐसा भी था जिसने किसीकी ओर देखा भी नहीं; क्योंकि उसके मनमें एक निश्चित ध्येय था कि उसे राजासे भेंट करनी है; इसलिए वह वाटिका पार करके राजभवनके द्वारपर पहुंच गया; परन्तु वहां खुली ‘तलवार’ लेकर दो प्रहरी खडे थे । उन्होंने उसे रोका । उनके रोकनेको अनदेखा करके और प्रहरियोंको धक्का देकर, वह दौडते हुए राजप्रसादमें चला गया; क्योंकि वह निश्चित समयपर राजासे मिलना चाहता था ।
जैसे ही वह भीतर पहुंचा, राजा उसे समक्ष ही मिल गए और उन्होंने कहा, ‘मेरे राज्यमें कोई व्यक्ति तो ऐसा मिला जो किसी प्रलोभनमें फंसे बिना अपने ध्येयतक पहुंच सका । तुम्हें मैं आधा नहीं पूरा राजपाट दूंगा । तुम मेरे उत्तराधिकारी बनोगे ।
ध्यान रहे ! सफल वही होता है जो लक्ष्यका निर्धारण करता है, उसपर अडिग रहता है, मार्गमें आनेवाली प्रत्येक कठिनाईका डटकर सामना करता है और छोटी-छोटी कठिनाइयोंको अनदेखाकर देता है ।
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