प्रेरक कथा – सन्त सखू


कृष्णा नदीके तटपर करवीर नामक तीर्थक्षेत्र है । अनेक वर्षपूर्व वहां सखूका ससुराल था । उसके पतिका नाम दिगम्बर था । उसकी सास भी साथ ही रहती थी । सास स्वभावसे अत्यन्त कठोर थी । वह सखूको अत्यधिक पीडा देती थी । उसे भूखा रखती थी, पीटती भी थी, प्रातःकालसे रात्रितक वह सखूको गृहकार्यमें संलिप्त रखती थी । गृहकार्य समाप्त करनेके उपरान्त भी उसे नित्य घुडकी सुननी ही पडती थी । सखू सबकुछ चुपचाप सहन करती थी । भोली सखू गृहकार्य करते समय सदैव श्रीविठ्ठलके (श्रीविठ्ठल अर्थात श्रीविष्णुका ही एक रूप, इनका महाराष्ट्रमें पूजन किया जाता है) स्मरणमें लीन रहती थी । उसके मुखमें सदैव पाण्डुरङ्गका (अर्थात श्रीविठ्ठलका) ही नाम रहता था ।
एक बार आषाढी एकादशीके दिवस पंढरपुर जानेवाली कीर्तन मण्डली उसके ग्राममें पहुंची । कृष्णा नदीके तटपर कीर्तन मण्डली ठहरी । वहां वारकरियोंका अर्थात विठ्ठल भक्तोंका भजन प्रारम्भ हुआ । एक महाराज कीर्तन करने लगे । भाग्यवश उसी समय सखू भी वहां नदीपर पानी भरने पहुंची । कीर्तनकार पंढरपुरकी महिमाका वर्णन करने लगे; पाण्डुरङ्गकी महानता गाने लगे । विठ्ठलका नाम सुनकर सखूका ध्यान वहां गया । महाराजजीका कीर्तन सुननेमें वह तल्लीन हो गई । सभी वारकरियोंको देखकर उसे भी पंढरपुर जानेका विचार आने लगा । उसमें विठ्ठलदर्शनकी तीव्र अभिलाषा उत्पन्न होने लगी । उसने निश्चय किया कि कुछ भी हो मैं पंढरपुर अवश्य जाऊंगी । यह निश्चयकर सखूने अपनी गगरी पडोसनको देकर घर जानेके लिए कहा । वह मण्डलीके साथ ही आगे बढने लगी । श्रीविठ्ठलनामके जयघोषमें सखू पूर्णरूपसे भावविभोर हो गई थी ।
उसकी पडोसनने घरपर सखूकी गगरी दे दी । सखूकी सासने पडोसनसे सखूके विषयमें पूछा । पडोसनद्वारा सम्पूर्ण वृत्तान्त बताए जानेपर सास अत्यन्त क्रोधित हो गई, उसने तत्क्षण अपने पुत्रको पुकारा तथा सखूको घर लानेकी आज्ञा दी । दिगम्बर शीघ्र जाकर कीर्तन मण्डलीके समीप पहुंचा तथा सखूको पीटते हुए घर ले आया । दोनोंने उसे एक कक्षमें बन्द कर दिया तथा उसे अन्न-जल भी नहीं दिया गया ।
सखू इस घटनासे अत्यन्त दुःखी हो गई कि अब उसे पाण्डुरङ्गके दर्शन नहीं होंगे । उसने पाण्डुरङ्गका नामस्मरण प्रारम्भ कर दिया । व्याकुल होकर वह पाण्डुरङ्गको पुकारने लगी ।
सखूकी असीम भक्ति एवं उसके निश्छल भावके कारण पाण्डुरङ्ग उसपर प्रसन्न हो गए । पाण्डुरङ्गने अपनी पत्नी देवी  रुक्मिणीको सर्व वृत्तान्त कथन किया तथा स्वयं स्त्रीवेष धारणकर वे भक्त सखूके पास पहुंचे । सखूके बन्द कक्षमें प्रवेशकर उस स्त्रीने उसका कुशलक्षेम पूछा तथा स्वयं भी ‘पंढरपुरकी वारकरी हूं’, ऐसा बताया । तब सखूने अपनी सारी व्याकुलता उसके सामने प्रकट की । स्त्रीने उसे बताया, ‘‘तुम पंढरपुर जाओ तथा पाण्डुरङ्गके दर्शनकर लौट आओ । तबतक मैं यहीं ठहरती हूं ।’’ यह सुनकर सखूको अत्यधिक आनन्द हुआ ।
सखू पंढरपुर पहुंची । पाण्डुरङ्गका रूप देखकर वह धन्य-धन्य हो गई तथा भाव विह्वल होकर सखूने वहीं अपने प्राण त्याग दिए । तदुपरान्त कीर्तन मण्डलीमें उसके ग्रामवासियोंने उसका अन्तिम संस्कार किया ।
घरपर एकादशीके अगले दिवस दिगम्बरने सखूके कक्षका द्वार खोला । सखूके रूपमें अवतरित साक्षात पाण्डुरङ्ग सखूके सभी गृहकार्य करने लगे ! सखूकी सासद्वारा बताए सभी कार्य पाण्डुरङ्ग बिना विरोध किए करने लगे ।
उधर वैकुण्ठमें देवी रुक्मिणी चिन्तित हो गईं कि यदि सखू लौटकर नहीं गई तो श्रीविठ्ठल उसके घरमें ही अटक जाएंगे । रुक्मिणीने सखूकी देहकी राख एवं अस्थियां एकत्रित कर सखूको जीवित किया तथा घर भेज दिया । सखूके घर पहुंचनेके पूर्व उसे मार्गमें ही भगवान पाण्डुरङ्ग मिले जो सखू बनकर उसके घरमें रह रहे थे ।
जिन ग्रामवासियोंने सखूका अन्तिम संस्कार किया था, वे सखूके घर आए तो सखू उन्हें गृहकार्य करते हुए दिखाई दी । उन्हें अत्यन्त आश्चर्य हुआ । उन्होंने सखूके पति एवं सासको समस्त वृत्तान्त कह सुनाया । सुनकर उन्होंने सखूको ही सत्य कथन करनेके लिए कहा । सखूने सम्पूर्ण घटना कथन की । यह सुनकर ग्रामवासी  आश्चर्यचकित हो गए । उसके पति एवं सासको भी घोर पश्चाताप हुआ तथा उन्होनें सखूसे अपने कृत्य हेतु क्षमा याचना की ।
कथा सार : इस कथाका तात्पर्य है यह कि सखूका ईश्वरके प्रति जो अपार भक्तिभाव था तथा उनके दर्शनकी जो तीव्र उत्कण्ठा थी यह देखकर स्वयं ईश्वर ही उसके समीप चले आए । हम सभीके जीवनमें भी यह घटना सम्भावित है; परन्तु इस निमित्त सभीको ईश्वरका भावपूर्ण स्मरण करना चाहिए ।


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