सुखका कारण है त्याग


एक शिष्यने अपने गुरुदेवसे पूछा, “गुरुदेव, सुखकी प्राप्ति कैसे होगी ?”

गुरुदेवने कहा, “त्याग करनेसे ही सुखकी प्राप्ति होती है ?”

शिष्य नहीं माना, वो बोला, “गुरुदेव, मैं नहीं मानता, त्याग करनेसे सुख संभव नहीं, सुख तो हमें धनसे ही मिलता है ।”

गुरुदेवने बहुत समझाया; परन्तु शिष्य नहीं माना ।

एक दिन गुरु और शिष्यको नदी पार करनी थी, नाविकने कहा, “तुम्हें रुपये देने होंगे”, शिष्यने नाविकको रुपये दिए और गुरुके साथ नावमें बैठ नदी पार कर ली ।

अब शिष्य बोला, “देखा गुरुदेव, नदी पार करनेके लिए धनकी आवश्यकता पडी, यदि इन्हें त्याग देते तो नदी कैसे पार करते ?”

गुरुदेव मुस्कुराकर बोले, “वत्स, तुमने थोडेसे रुपयोंका त्याग किया तो छोटीसी नदी पार की, तो सोचो, जब सभी वस्तुओंका त्याग कर दोगे तो क्या संसार-सागरसे पार नहीं हो जाओगे ?”

सार यह है कि जिसके जीवनमें त्याग है, वही बंधनोंसे मुक्त है; क्योंकि बंधन और मुक्ति दोनोंका कारण ही ये मन है और मनसे किया गया त्याग ही मुक्ति है । त्यागमें ही सच्चा सुख है, जीवनमें त्याग और वैराग्य आते ही प्रभुसे मिलनेमें देर नहीं होती ।



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