प्रेरक कथा


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कर्मा बाईजी भगवानको बालकके भावसे भजती थी | बिहारीजीसे प्रतिदिन बातें किया करती थी | एक दिन बिहारीजीसे बोली – आप मेरी एक बात मानोगे ?

बिहारीजीने कहा कहो ! क्या बात है ?

कर्माबाईजीने कहा – मेरी एक इच्छा है कि एक बार अपने हाथोंसे आपको कुछ बनाकर खिलाना चाहती हूं |

बिहारीजीने कहा – ठीक है !

अगले दिवस कर्माबाईजीने खिचडी बनायीं और बिहारीजीको भोग लगाया, जब बिहारीजीने खिचडी  खायी, तो उन्हें इतनी अच्छी लगी, कि वे प्रतिदिन आने लगे | अब कर्माबाईजी प्रतिदिन सवेरे उठकर सबसे प्रथम खिचडी बनाती, और बिहारीजी भी सुबह होते ही दौडकर आते और दरवाजेसे ही आवाज लगाते, “माँ! मैं आ गया शीघ्र खिचडी लाओ | कर्माबाईजी अत्यधिक प्रेमभावसे खिचडी लेकर आती, बिहारीजी भोग लगाते और लौट जाते |

एक दिवस एक साधू कर्माबाईजीके पास आये और उन्होंने सब देखा तो वे बोले, “आप सर्वप्रथम सवेरे उठकर खिचडी क्यों बनाती है, न स्नान किया, न रसोई घर स्वच्छ की, आपको ये सब करनेके पश्चात् भगवानके लिये भोग बनाना चाहिये और यह सब जानकार अगले दिवस कर्माबाईजीने ऐसा ही किया |

जैसे ही सुबह हुई बिहारीजी आये और बोले,  “मां, मैं आ गया, खिचडी लाओ |

कर्माबाईजीने कहा – अभी मैं स्नान कर रही हूं, थोडी प्रतीक्षा करो !  थोडी देरके पश्चात् बिहारीजीने पुनः आवाज लगाई, “जल्दी कर मां, मेरे मंदिरके पट खुल जायेगे मुझे जाना है |”  वे पुनः बोली – अभी मैं स्वच्छता कर रही हूं | बिहारीजीने सोचा आज मेरी मांको क्या हो गया ? ऐसा तो इससे पूर्व कभी नहीं हुआ | अपना कार्य समाप्त कर, जैसे ही मां खिचडी बनाकर बिहारीजीको भोग लगानेके लिए लेकर आई – उन्होंने झटपटसे खिचडी खायी; परन्तु आज खिचडीमें भी वो भाव,वो स्वाद नहीं आया और बिना जल ग्रहण किये ही भागे |

बाहर निकलते हुए उन्होंने एक साधूको देखा तो समझ गये, कि अवश्य ही इस साधूने मांको कुछ पट्टी पढाई होगी |

थोडी देर बाद जब मंदिरमें पुजारीजीने जैसे ही मंदिरके पट खोले तो देखा भगवानके मुखपर खिचडी लगी थी | पुजारीजी बोले – प्रभु ! ये खिचडी कैसे आपके मुखपर लग गयी |

बिहारीजीने कहा -पुजारीजी आप उस साधूके पास जाओ और उसे समझाओ, न जाने मेरी मांको क्या पट्टी पढाई दी उन्होंने | बिहारीजीका आदेश लेकर पुजारीजीने जाकर उस साधूको सारी बातें बता दी | तब वह साधू घबरा गए और तुरंत कर्माबाईजीके पास जाकर कहा कि ये नियम–धर्म तो हमारे लिए हैं | आप तो जैसे खिचडी बनाती थी उसी प्रकार ही बनाये | पुनः अगले दिवससे कर्माबाईजीने पहले जिस प्रकार खिचडी बनाना आरम्भ कर दिया और बिहारीजी भी बडे प्रेमसे प्रतिदिन आते और खिचडी खाते |

कुछ समय पश्चात, कर्माबाईजीकी मृत्यु हो गयी | इसपर बिहारीजी बहुत दुखी हो गए और रोने लगे | उसी दिवस जब पुजारीजीने मंदिरके पट खोला और देखा कि भगवान रो रहे थे | इसपर पुजारीजीने पूछा – प्रभु ! आप क्यों रो रहे हो ?

बिहारीजीके कहा  – पुजारी जी ! अब मेरी मां नहीं रहीं | अब मुझे कौन खिचडी बनाकर खिलायेगा |

पुजारीजी बोले – प्रभु आप व्यथित न हो | आजसे आपको सबसे पहले प्रतिदिन खिचडीका भोग लगेगा |

इस प्रकार आज भी जगन्नाथ भगवानको खिचडीका भोग लगता है |

इस कथाका सार यह है कि भगवान की पूजा, भक्ति, प्रेम भावसे की जानी चाहिये | यदि भाव नहीं, तो ये स्वछता, स्नान, इत्यादि, केवल एक आडम्बर मात्र रह जायेगे |



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