प्रेरक कथा


Mbharat9a

वासनासे मृत्यु

 द्रौपदीके साथ पाण्डव वनवासके अंतिम वर्ष अज्ञातवासके समयमें वेश तथा नाम परिवर्तन कर राजा विराटके यहां रहते थे | उस समय द्रौपदीने अपना नाम सैरंध्री रख लिया था और विराट नरेशकी रानी सुदेष्णाकी दासी बनकर वे किसी प्रकार समय व्यतीत कर रही थीं |

राजा विराटका प्रधान सेनापति कीचक सुदेष्णाका भाई था | एक तो वह राजाका  साला था, दूसरे सेना उसके अधिकारमें थी, तीसरे वह स्वयं प्रख्यात बलवान् था  और उसके समान ही बलवान् उसके एक सौ पांच भाई उसका अनुगमन करते थे | इन सब कारणोंसे कीचक निरंकुश तथा मदांध हो गया था | वह सदा मनमानी करता था | राजा विराटका भी उसे कोई भय या संकोच नहीं था | उल्टे राजा ही उससे दबे रहते थे और उसके अनुचित व्यवहारपर भी कुछ कहने का साहस नहीं करते थे |

दुरात्मा कीचक अपनी बहन रानी सुदेष्णाके भवनमें एक समय किसी कार्यवश गया | वहां अपूर्व लावण्यवती दासी सैरंध्रीको देखकर उसपर आसक्त हो गया | कीचकने नाना प्रकारके प्रलोभन सैरंध्रीको दिए | सैरंध्रीने उसे समझाया, “मैं पतिव्रता हूं | अपने पतिके अतिरिक्त किसी पुरुषकी कभी कामना नहीं करती | तुम अपना पाप-पूर्ण विचार त्याग दो|”

किन्तु कामांध कीचकने उसकी बातोंपर ध्यान नहीं दिया | उसने अपनी बहन सुदेष्णाको भी तैयार कर लिया कि वे सैरंध्रीको उसके भवनमें भेजेंगी | रानी सुदेष्णाने सैरंध्रीके अस्वीकार करनेपर भी अधिकार प्रकट करते हुए डांटकर उसे कीचकके भवनमें वहांसे अपने लिए कुछ सामग्री लानेको भेजा | सैरंध्री जब कीचकके भवनमें पहुंची, तब वह दुष्ट उसके साथ बल प्रयोग करनेपर उतारू हो गया | उसे धक्का देकर वह भागी और राजसभामें पहुंची;  परंतु कीचकने वहां पहुंचकर राजा विराटके सामने ही उसके केश पकडकर भूमिपर पटक दिया और पैरकी एक ठोकर लगा दी | राजा विराट कुछ भी बोलनेका साहस न कर सके |

सैरंध्री बनी द्रौपदीने देख लिया कि इस दुरात्मासे विराट उसकी रक्षा नहीं कर सकते | कीचक और भी धृष्ट हो गया | अंतमें व्याकुल होकर रात्रिमें द्रौपदी भीमसेनके पास गई और रोकर उसने भीमसेनसे अपनी व्यथा कही | भीमसेनने उसे आश्वासन दिया | दूसरे दिन सैरंध्रीने भीमसेनके निर्देशानुसार कीचकसे प्रसन्नतापूर्वक बातें कीं और रात्रिमें उसे नाट्यशालामें आनेका निमंत्रण दिया |

राजा विराटकी नाट्यशाला अंत:पुरकी कन्याओंके नृत्य एवं संगीत सीखनेका स्थान था | वहां दिनमें कन्याएं गान-विद्याका अभ्यास करती थीं, किंतु रात्रिमें वह सूनी रहती थी | कन्याओंके विश्रामके लिए उसमें एक पलंग पडा था, रात्रिका अंधकार हो जानेपर भीमसेन चुपचाप आकर नाट्यशालाके उस पलंगपर सो गए | कामांध कीचक सज-धजकर वहां आया और अंधेरेमें पलंगपर बैठकर, भीमसेनको सैरंध्री समझकर उसके ऊपर उसने हाथ रखा | उछलकर भीमसेनने उसे नीचे पटक दिया और वे उस दुरात्माकी छातीपर चढ बैठे |

कीचक बहुत बलवान् था | भीमसेनसे वह भिड गया | दोनोंमें मल्लयुद्ध होने लगा; किंतु भीमसेनने उसे शीघ्र ही पछाड दिया और उसका गला घोंटकर उसे मार डाला | तत्पश्चात् उसका मस्तक तथा हाथ-पैर इतने बलपूर्वक दबा दिए कि सब धडके भीतर घुस गए | कीचकका शरीर एक डरावना लोथडा बन गया |

प्रात:काल सैरंध्रीने ही लोगोंको दिखाया कि उसका अपमान करनेवाला कीचक किस दुर्दशाको प्राप्त हुआ; परंतु कीचकके एक सौ पांच भाइयोंने सैरंध्रीको पकडकर बांध लिया | वे उसे कीचकके शवके साथ चितामें जला देनेके उद्देश्यसे श्मशान ले गए | सैरंध्री क्रंदन करती जा रही थी | उसका विलाप सुनकर भीमसेन नगरका परकोटा कूदकर श्मशान पहुंचे | उन्होंने एक वृक्ष उखाडकर कंधेपर रख लिया और उसीसे कीचकके सभी भाइयोंको यमलोक भेज दिया | सैरंध्रीके बंधन उन्होंने काट दिए |

अपनी कामासक्तिके कारण दुरात्मा कीचक मारा गया और पापी भाईका पक्ष लेनेके कारण उसके एक सौ पांच भाई भी मृत्युको प्राप्त हुए ।

 



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