भगवानसे परिचय !
ध्रुवसे क्यों भगवान शीघ्र प्रसन्न हुए ?
शास्त्रोंमें यह कथा आती है कि एक बार भक्त ध्रुवके संबंधमें साधुओंकी गोष्ठी हुई । उन्होंने कहा, “देखो, भगवानके यहां भी परिचयसे कार्य सिद्ध होता है । हम कई वर्षोंसे साधु(साधक) बनकर तप कर रहे हैं, तथापि भगवानने अभीतक दर्शन नहीं दिए । जबकि ध्रुव है नारदजीका शिष्य, नारदजी हैं ब्रह्माके पुत्र और ब्रह्माजी उत्पन्न हुए हैं विष्णुजीकी नाभिसे । इस प्रकार ध्रुव हुआ विष्णुजीके पौत्रका शिष्य । ध्रुवने नारदजीसे मंत्र पाकर उसका जप किया तो भगवान ध्रुवके सम्मुख प्रकट हो गए ।” इस प्रकारकी चर्चा चल ही रही थी कि इतनेमें एक केवट वहां आया और बोला, “हे साधुजनों ! प्रतीत होता है आप किसी समस्यापर चर्चारत हैं | चलिये, मैं आपको किंचित नौका विहार करवा दूं ।” सभी साधु नौकामें बैठ गए, केवट उनको सरोवरके मध्य ले गया जहां कुछ शिखर(टीले) थे । उनपर अस्थियां दिख रही थीं । तब कौतूहलवश साधुओंने पूछा, “केवट, तुम हमें कहां ले आए ? ये किसकी अस्थियोंके ढेर हैं ?” तब केवट बोला, “ये अस्थियां भक्त ध्रुवकी हैं । उन्होंने कई जन्मोंतक भगवानको पानेके लिए यहीं तपस्या की थी । अपने अंतिम मानव जन्ममें देवर्षि नारद उन्हें गुरुके रूपमें प्राप्त हुए और उनकी बताई युक्तिसे उनकी तपस्या मात्र छह माहमें फल गई और उन्हें प्रभुके दर्शन हो गए ।” सर्व साधुओंको अपनी शंकाका समाधान मिल गया ।
इस प्रकार सद्गुरुसे प्राप्त मंत्रका विश्वासपूर्वक जप शीघ्र फलदायी होता है और ईश्वर कई जन्मोंके फलसे ही प्रसन्न होते हैं, इस जन्ममें इस देहकी आयु देखकर कोई उस जीवात्माकी आयु या उसके कुल तपस्याका आकलन नहीं कर सकता है । इस प्रसंगसे हमें यह भी शिक्षा मिलती है कि भगवानकी दृष्टि सदैव निस्पृह एवं निष्पक्ष रहती है ।
Leave a Reply