प्रेरक प्रसंग – पूरा लड्डू


laddu

एक समय एक पिता और  पुत्र भोजन करने बैठे । पिताकी थालीमें मांने एक पूरा लड्डू  रखा और बच्चेकी थालीमें आधा । बच्चा रूदन करने लगा, हठ करने लगा कि मुझे भी पूरा  लड्डू चाहिए ।
मां कुशल थी । उसने उसी आधे लड्डूसे एक छोटासा गोल लड्डू बनाया और  बच्चेको परोस दिया । बच्चा प्रसन्न हुआ । पिताको बडा लड्डू मिला और बच्चेको  छोटा तथापि वह संतुष्ट था, क्योंकि उसे पूरा लड्डू मिल गया था ।
इसका अर्थ यह हुआ कि बच्चा कहना चाहता है, “मेरे पिता (परमपिता) जितने पूर्ण आत्मा हैं, उतना ही पूर्ण आत्मा मैं भी हूं ।” मैं लघु (छोटा) हूं, परन्तु खण्ड (टुकडा) नहीं हूं ।”
भविष्यमें जो विश्वका राज होगा, वह बडा लड्डू होगा और ग्रामका राज छोटा लड्डू होगा; परन्तु वह भी पूर्ण होना चाहिए । इसीलिए कहा गया है- “पूर्णमद: पूर्णमिदम् ।” और साधकको इस कथासे शिक्षा प्राप्त करते हुए अपनी प्रत्येक कृति एवं सेवामें पूर्णता लानेका सतत प्रयास करना चाहिए ।



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