जैसे पतिव्रता स्त्री को सत्पुरुष एवं धर्माचरणी पति द्वारा अर्जित ऐहिक और परलौकिक थाती स्वतः ही प्राप्त हो जाती है उसी प्रकार सद्गुरु की पूर्ण अध्यात्मिक शक्ति योग्य पात्रवाले सतशिष्य को स्वतः ही प्राप्त हो जाता है और तब गुरु शिष्य में कोई भेद नहीं रह जाता और शिष्य गुरुमय हो जाता है ! -तनुजा ठाकुर
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