अस्थिर बुद्धि एवं अशान्त चित्तवाला व्यक्ति कभी भी साधना नहीं कर सकता है । साधनाकालमें अनेक बार ईश्वरेच्छा अनुरूप हमें विपरीत परिस्थितियोंमें रहना पड सकता है । अस्थिर प्रवृत्तिवाला व्यक्ति ऐसी स्थितिमें साधना नहीं कर सकता । ऐसे अशान्त मन एवं शंकालु स्वाभाववाले अनेक बार सकारात्मक प्रसंगमें भी नकारात्मक सोचते हैं, वे स्वयं भी सदैव विकल्पमें रहते हैं एवं अन्य साधकोंमें भी विकल्प निर्माण करते हैं और अपने दोषों एवं चूकोंको मानकर उसमें सुधार करना ही नहीं चाहते हैं; यह उनकी विशेषता होती है ! यद्यपि उन्हें अपने दोषोंको दूर करने हेतु सर्व उपाय बार-बार बताए जाएं तो भी वे प्रयास नहीं करते हैं, ऐसे साधक साधनाकी पात्रता नहीं रखते । धर्मप्रसारके मध्य जब भी ऐसे साधकोंको मैंने साधना बताई तो मैंने पाया कि उन्हें मानसिक स्तरपर सम्भालने हेतु अधिक समय भी देना पडता है एवं उनके विकल्पमें ही अनेक वर्ष निकल जाते हैं और अपनी प्रगति न होते देख वे अन्य साधकोंसे इर्ष्या भी करने लगते हैं; अतः साधनामें द्रुत गतिसे प्रवास हेतु निश्चयात्मक बुद्धिका होना अति आवश्यक है ।
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