साधकोंको बाहरका भोजन क्यों नहीं करना चाहिए ? (भाग-४)


ईश्वर प्राप्ति हेतु इच्छुक साधकोंको, पवित्र विचार और अपनी इन्द्रियोंको वशमें रखनेवाला तथा चैतन्य प्राप्त करने हेतु सात्त्विक आहार लेना चाहिए ।
आयुः सत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धनाः ।
रस्याः स्निग्धाः स्थिरा हृद्याआहाराःसात्त्विकप्रियाः ॥भगवद्गीता
‘आयु, बुद्धि, बल, आरोग्य, सुख और प्रीतिको बढानेवाला रसयुक्त, चिकना और स्थिर रहनेवाला तथा स्वभावसे ही मनको प्रिय, ऐसा आहार अर्थात खाद्य पदार्थ सात्त्विक व्यक्तिको प्रिय होते हैं ।
जो अन्न बुद्धिवर्धक हो, वीर्यरक्षक हो, उत्तेजक न हो, तमोगुणी न हो, ‘कब्ज’ न करे, सुपाच्य हो, वह सत्त्वगुणयुक्त आहार है । हरे ‘ताजे’ शाक, मोटे अनाज जैसे ज्वार, बाजरा, मक्का इत्यादि, चावल, दालें, दूध, शुद्ध घी, मक्खन, बादाम, सन्तरे, सेव, द्राक्ष (अंगूर), केले, अनार, मौसमी इत्यादि सात्त्विक आहार हैं । सात्त्विक भोजनसे शरीरमें स्फूर्ति रहती है, चित्त निर्मल रहता है। सात्त्विक भोजन करनेवाले व्यक्ति चिन्तनशील और साधक वृत्तिके होते हैं । उन्हें अधिक विकार नहीं सताते । उनके शरीरके आन्तरिक अवयवोंमें विष एकत्रित नहीं होते ।
कोरोना कालमें लोगोंने बाहरका भोजन करना छोडकर, घरका भोजन करना आरम्भ कर दिया और पूरे भारतमें लोगोंके सामान्य स्वास्थ्यमें सुधार देखा गया, जिससे सिद्ध होता है कि बाहरका भोजन अनेक रोगोंके होनेका मुख्य कारण है !



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