साधनाका दृष्टिकोण देती कुछ प्रेरक कथाएं – भाग -२


एक गांंवमें एक वृद्ध स्त्री रहती थीं । उनका कोई नहीं था और वे गोबरकी उपले बनाकर बेचती थी और उसीसे अपना गुजारा चलाती थीं । परंतु उस स्त्रीकी एक विशेषता थी वे कृष्ण भक्त थीं, उठते बैठते नामजप किया करती थीं यहांं तक उपले बनाते समय भी । उस गांंवके कुछ दुष्ट लोग उसकी भक्तिका उपहास करते और एक दिन तो उन दुष्टोंने उस वृद्ध स्त्रीके सारे उपले चुरा लिए और आपस में कहने लगे कि अब देखें कृष्ण कैसे इनकी सहायता करते हैं ! सुबह जब वह उठीं तो देखती हैं कि सारी उपले किसीने चुरा ली । वे मन ही मन हंसने लगी और अपने कान्हा को कहने लगीं , “पहले माखन चुराता था और मटकी फोड गोपियोंको सताता था और इस बुढियाकी उपले छुपा मुझे सताता है, ठीक है जैसी तेरी इच्छा” यह कह उसने अगले दिनके लिए उपले बनाना आरंभ कर दिये । दोपहर हो चला तो भूख लग गयी पर घरमें कुछ खाने को नहीं था, दो गुड की डली थीं अतः एक अपने मुखमें डाल पानीके कुछ घूंट ले लेटने चली गयी । भगवान तो भक्त वत्सल होते हैं अतः अपने भक्तको कष्ट होता देख वे विचलित हो जाते हैं, उनसे उस वृद्ध साधिकाके कष्ट सहन नहीं हो पाये । सोचा उसकी सहायता करने से पहले उसकी परीक्षा ले लेता हूंं अतः वे एक साधूका वेश धरण कर उसके घर पहुंंच कुछ खानेको मांगने लगे , वृद्ध स्त्रीको अपने घर आए एक साधूको देख आनंद तो हुआ पर घरमें कुछ खाने को न था यह सोच दुख भी हुआ उसने गुड की इकलौती डली बाबाको शीतल जल के साथ खाने को दे दी । बाबा उस स्त्री के त्यागको देख प्रसन्न हो गए और जब वृद्ध स्त्रीने अपने सारे वृतांत सुनाये तो बाबा उन्हें सहायताका आशवासन दे चले गए । वे गांंवके सरपंचके यहांं पहुंचे। सरपंचसे कहा ,” सुना है इस गांंवके बाहर जो वृद्ध स्त्री रहती है उसकी उपले किसी ने चुरा लिए, मेरे पास एक सिद्धि है यदि गांंवके सभी लोग अपने उपले ले आयें तो मैं अपनी सिद्धिके बल पर उस वृद्ध स्त्रीके सारे उपले अलग कर दूंगा ।” सरपंच एक भला व्यक्ति था उसे भी वृद्ध स्त्रीके उपले चोरी होने का दुख था अतः उन्होने साधू बाबा रूपी कृष्णकी बात तुरंत मान ली और गांंव में ढिंढोरा पिटवा दिया कि सब अपने घर कि उपले तुरंत गांंवकी चौपाल पर लाकर रखें । “ जिन दुष्ट लोगोंने चोरी की थी, वे भी वृद्ध स्त्री के उपले अपने उपलों में मिलाकर उस ढेर में एकत्रित कर दिये । उन्हें लगा कि सब की उपले तो एक जैसी होती हैं अतः साधू बाबा कैसे पहचान पाएंगे । दुर्जनोंको ईश्वरकी लीला और शक्ति दोनों पर ही विश्वास नहीं होता । साधू वेशधारी कृष्णने सब उपलोंको कान लगाकर वृद्ध स्त्रीकी उपले अलग कर दी । वृद्ध स्त्री आपे उपलों को तुरंत पहचान गयी और उनकी प्रसन्नताका तो ठिकाना ही नहीं था , वे अपनि उपलें उठा , साधू बाबा को नमस्कार कर चली गईं । जिन दुष्टोंने वृद्ध स्त्रीकी उपले चुराई थीं उन्हें यह समझ में नहीं आया कि बाबाने कान लगाकर उन उपलों को कैसे पहचाना, अतः जब बाबा गांंव से कुछ दूर निकल आए तो वे दुष्ट बाबा से इसका कारण जानना चाहे ,” बाबाने सरलतासे कहा कि वृद्ध स्त्री सतत ईश्वरका नाम जप करती थी और उसके नाममें इतनी आर्तता थी कि वह उपलों में भी चला गया , कान लगाकर वे यह सुन रहे थे कि किन उपलों से कृष्ण का नाम निकलता है और जिनसे कृष्णका नाम निकल रहा था उन्होंंने उन्हेंं अलग कर दी ।”

यह है नामजप का परिणाम अतः हमने व्यवहार के प्रत्येक कृति करते समय नामजप करना चाहिए इससे हम पर ईश्वर कि कृपा का सातत्य से वर्षाव होता है !



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