सदुपयोग


personality - thiruvalluvar_07_29_12_842

दक्षिण भारतके प्रसिद्ध संत तिरुवल्लुवर एक जुलाहा थे । एक दिन वह अतीव परिश्रमसे निर्मितकी हुई साडीको लेकर विक्रयके लिए विपणि(बाजार) में बैठे ही थे कि एक युवक उनके समीप आया ।  उसे तिरुवल्लुवरकी साधुतापर संदेह था । उसने उनकी परीक्षा लेनेके विचारसे उस साडीका मूल्य पूछा । संतने विनीत वाणीमें दो रुपए बताया ।

युवकने उस साडीको चीरकर उसके दो भाग कर दिए तत्पश्चात् उनका मूल्य पूछा । संतने उसी निश्छल स्वर से एक-एक रुपया बताया । युवकने पुनः प्रत्येकके दो भाग कर मूल्य पूछा और संतने शांत स्वरमें आठ-आठ आने बताया ।  युवकने पुनः प्रत्येकके दो-दो खण्ड(टुकडे) कर मूल्य पूछा और संतने धीरे किंतु गंभीर स्वरमें ही उत्तर दिया, ‘चार-चार आने ।’

अंततः फाडते-फाडते जब वह साडी अत्यंत विदीर्ण(चीथडे-चीथडे) हो गई, तो युवक उसका गोला बनाकर फेंकते हुए बोला, ‘अब इसमें रहा ही क्या है कि इसका मूल्य दिया जाए ?’

संत चुप ही रहे तब युवकने धनका अभिमान प्रदर्शित करते हुए उन्हें दो रुपए देते हुए कहा, ‘यह लो साडीका मूल्य !’ किंतु तिरुवल्लुवर बोले, ‘बेटा ! जब तुमने साडी क्रय ही नहीं की, तो मैं मूल्य भी कैसे लूं ?’

अब तो युवकका उद्दंड हृदय पश्चातापसे ग्लानि करने लगा । विनीत हो वह उनसे क्षमा मांगने लगा । तिरुवल्लुवरकी नेत्र भी डबडबा आईं । वे बोले, ‘तुम्हारे दो रुपए देनेसे तो इस क्षतिकी भरपाई नहीं होगी ? किन्तु क्या तुम्हें ज्ञात है साडी हेतु कपास उत्पन्न करनेमें, कपासके पौधोंकी सिंचाई करनेमें, फसलकी कई दिनों तक देखभाल करनेमें, कपासके बीज पृथक करनेमें, उसको धुनने और सूत बुननेमें कितने व्यक्तियोंका समय और श्रम लगा होगा ?’  जब साडी बुनी गई, तब मेरे कुटुंबियोंने कितनी कठिनाई उठाई होगी ?’ क्या तुम उस समय और श्रमका मूल्य चुका सकते हो ?
युवककी नेत्रोंसे पश्चातापकी अश्रुधारा बहने लगी । वह बोला, ‘किन्तु आपने मुझे साडी फाडनेसे रोका क्यों नहीं ?’
संतने उत्तर दिया, ‘रोक सकता था, परन्तु तब क्या तुम्हें शिक्षा देनेका ऐसा अवसर मिल सकता था ?’

वस्तुतः यह कथा हमें संतोंकी क्षमाशीलताका परिचय तो करवाती ही है, साथ ही संतोंके सीखानेकी पद्धति भी कितनी निराली होती है यह भी हमें भान होता है ; यह भी शिक्षा देती है कि प्रकृति प्रदत्त अथवा परिश्रमसे अर्जित सभी प्रकारकी वस्तुओंका सदुपयोग करना हमारा कर्तव्य ही नहीं अपितु हमारी वृत्ति भी होनी चाहिए ।



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