समाज कितना अकर्मण्य हो गया है


अनेक व्यक्तिने मुझसे कहा कि मुझे अध्यात्ममें प्रगति करना है, सेवा करना है अतः आप बताएं कि हम क्या सेवा कर सकते हैं ? अनेकोंने कहा कि वे घर बैठे कुछ संगणकीय (कम्प्युटर) से संबन्धित सेवा कर सकते हैं, मैंने अनेकोंको संगणकद्वारा अंतर्जालसे प्रसारकी सेवाके बारेमें बताया परंतु दो चारको छोड किसीने भी हाँ नहीं कहा, वे अपना बहुमूल्य समय अंतर्जालपर या फेसबुकपर व्यर्थ करते हैं, कृपा भी चाहते हैं परंतु सेवा नहीं करना चाहते हैं !! इससे समझमें आता है कि समाज कितना अकर्मण्य हो गया है और अपने मन अनुकूल व्यवहार करना पसंद करता है ! और अंतर्जाल के माध्यमसे प्रसारके लिए जो दृढता और सातत्य चाहिए उसकी समाजमें कितनी कमी है ! – तनुजा ठाकुर

 



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