संकटमें है देशका गोवंश


gau-mata-11देशकी स्वतन्त्रताके समय भारतमें गोवंशकी संख्या लगभग अठारह कोटि थी । १९९३ की पशुगणनामें गोवंश घटकर आधेसे भी कम यानी ८ कोटि ८५ लक्ष आठ सहस्र रह गया। दस वर्ष बाद २००३ की पशु गणना में यह और भी घटकर ८,२९,६१,००० पर आ गया। भारतीय शासनने  (सरकारने) २००७-२००८ में पंचवार्षिकी पशुगणना कराई थी परंतु इसके आंकडे सार्वजनिक नहीं किए गए। आशंका यह है कि आज गोवंश घटकर ५ कोटि ही रह गया है। स्पष्ट है कि तीव्र गतिसे गोवंशका विनाश हो रहा है और राज्य सरकारें उदासीन या सहयोगीकी भूमिकामें हैं ।

भारतमें गोवंशकी प्रमुख २६ नस्लोंमें से १६ नस्लें समाप्त हो चुकी हैं। इनमें से कुछके नाम हैं – अलमबादी, बिंझनपुरी, बार्गुर, खतियाली, केंकथा, खैरीगढ़, पूर्निया, रायचुरी, संचोर और सिरी । यदि गोहत्या इसी निर्ममतासे चलता रहा तो साहीवाल और थरपारकर जैसी नस्लें भी मिट जाएंगी । मनुष्यों व प्रकृतिको अपना मूल्यवान गोमूत्र, गोबर व दुग्ध प्रदान करनेवाली गोमाताकी रक्षा करना अत्यंत आवश्यक है । उल्लेखनीय है कि १९४७ में देशमें प्रति एक सहस्र जनसंख्यापर ५५० गोवंश था, आज वह आंकडा गिरकर प्रति सहस्र महज ४२ पर आ गया है।



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