देवभाषा संस्कृतका भाषा सौन्दर्य


कांचीपुरमके १७ वीं शताब्दीके कवि वेंकटाध्वरिद्वारा रचित ग्रन्थ ‘राघवयादवीयम्’ एक अद्भुत ग्रन्थ है । इस ग्रन्थको ‘अनुलोम-विलोम काव्य’ भी कहा जाता है, इसमें केवल ३० श्लोक हैं, इन श्लोकोंको सीधे-सीधे पढते जाएं, तो रामकथा बनती है और विपरीत क्रममें पढनेपर कृष्णकथा । इस प्रकार, हैं तो केवल ३० श्लोक; परन्तु कृष्णकथाके भी ३० श्लोक जोड लिए जाएं तो बनते हैं, ६० श्लोक । उदाहरणके लिए देखें :

अनुलोम :

वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः ।
रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे ॥१॥
विलोम :
सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी मां रामोराः ।
यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं देवम् ॥ १॥
अनुलोम :
साकेताख्या ज्यायामासीद्याविप्रादीप्तार्याधारा ।
पूराजीतादेवाद्याविश्वासाग्र्यासावाशारावा ॥२॥
विलोम :
वाराशावासाग्र्या साश्वाविद्यावादेताजीरापूः ।
राधार्यप्ता दीप्राविद्यासीमायाज्याख्याताकेसा ॥२॥
सारे श्लोक इन्हीं विशेषताओंके साथ हैं, क्या ऐसा कुछ अंग्रेजी भाषामें रचा जा सकता है ?, यही है संस्कृत भाषाका सौन्दर्य !


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