संस्कृत क्यों सीखें ? (भाग – १३)


पाश्चात्योंने भी संस्कृतके महत्त्वको किया है स्वीकार एवं उसका कर रहे हैं प्रसार

‘ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय’से संस्कृतमें विद्यावाचस्पति (पी.एच.डी) करनेवाले डॉक्टर वारविक जेस्सप, सेंट जेम्स इण्डिपेंडेंट विद्यालयके संस्कृत विभागके अध्यक्ष हैं । उनकी अथक लगनने संस्कृत भाषाको इस विद्यालयके ८०० विद्यार्थियोंके जीवनका अंग बना दिया है । डॉक्टर जोसफके अनुसार, संस्कृत विश्वकी सर्वाधिक पूर्ण, परिमार्जित एवं तर्कसंगत भाषा है । यह एकमात्र ऐसी भाषा है, जिसका नाम उसे बोलनेवालोंके नामपर आधारित नहीं है, वरन् संस्कृत शब्दका अर्थ ही है, ‘पूर्ण भाषा’ । इसी विद्यालयके प्रधानाध्यापक पॉल मौसका कहना है कि संस्कृत अधिकांश यूरोपीय और भारतीय भाषाओंकी जननी है । वे संस्कृतसे अत्यधिक प्रभावित हैं । प्रधानाचार्यने बताया कि प्रारम्भमें संस्कृतको अपने पाठ्यक्रमका अंग बनानेके लिए उन्हें अत्यधिक चुनौतियोंका सामना करना पडा । प्रधानाचार्य मौसने अपने दीर्घकालके अनुभव एवं शोधके आधारपर बताया है कि संस्कृत सीखनेके अन्य लाभ भी हैं । देवनागरी लिपि लिखनेसे तथा संस्कृत बोलनेसे बच्चोंकी जिह्वा तथा अंगुलियोंका कडापन समाप्त हो जाता है और उनमें लचीलापन आ जाता है । यूरोपीय भाषाएं बोलनेसे और लिखनेसे जिह्वा एवं अंगुलियोंके कुछ भाग सक्रिय नहीं होते हैं, जबकि संस्कृतके प्रयोगसे इन अंगोंके अधिक भाग सक्रिय होते हैं । संस्कृत अपनी विशिष्ट ध्वन्यात्मकताके कारण प्रमस्तिष्कीय (Cerebral) क्षमतामें वृद्धि करती है । इससे सीखनेकी क्षमता, स्मरणशक्ति, निर्णयक्षमतामें आश्चर्यजनक अभिवृद्धि होती है, इसलिए वैदिक संस्कृतिमें सर्वप्रथम बच्चोंका विद्यारम्भ संस्कार कराया जाता था और उसमें मन्त्र लेखनके साथ बच्चेको जप करनेके लिए भी प्रोत्साहित किया जाता था । संस्कृतसे छात्रोंकी गतिदायक कुशलताएं (Motor Skills) भी विकसित होती हैं । – तनुजा ठाकुर



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