सन्त कार्य अनुरूप सब देते है इसकी पुनः प्रतीति मिली !
एक बार पुनः एक सन्तने मुझे एक सहस्र रुपये दिए ।
६ अक्तूबरको इसी वर्ष मैं एक सिद्ध सन्त, सांगी बावडी स्थित हनुमान मन्दिरके महन्त पूज्य श्रीमनोहरदासजी महाराज आश्रममें गई थी । उन्होंने उस दिवसमें मुझे एक सहस्र रुपये दिए । मैंने उन्हें बताया कि उनसे पूर्व भी दो सन्तोंने ऐसे ही आशीर्वाद के रूपमें पैसे दिए थे, मैंने उनसे जिज्ञासावश पूछा, “बाबा, आप सन्तगण सब मुझे मात्र अशीर्वाद दें, पैसे क्यों देते हैं ?
उन्होंने कहा, “आपको आगे बहुत कार्य करना है, आपके कार्यमें धनका कभी अभाव न हो; इसलिए हम आपको ये पैसे देते हैं ।” मैंने उन्हें कृतज्ञतापूर्वक नमन किया ।
आपको बताया ही था कि इससे पूर्व इंदौरके सन्त परम पूज्य रामानन्द महाराज, कांदलीके मौनी बाबाने हमें एक-एक सहस्र रुपये दिए थे । जानापावके पूज्य बद्री बाबा भी जब देखा कि मैंने मीरा कुटीरके प्रथम तलकी आधी छत ढाली है तो उन्होंने कहा, “मैंने अभी भूमिका एक छोटासा भाग बेचा है, मैं तुम्हें पैसे देता हूं, पूरी छत एक साथ ढाल लो ।” मैंने विनम्रतापूर्वक बताया कि अभी पूरी छतको ढालनेकी कोई विशेष आवश्यकता नहीं है; किन्तु उनका यह कहना ही उनका हमारे कार्यके प्रति प्रेमको दर्शाता है ।
झारखण्डके एक सन्त खादेरू बाबाने तो मुझे एक कुबेर यन्त्र लाकर देते हुए कहा, “मैया, इससे आपके पास आपके कार्यका धन टिकेगा ।” मैंने उसे अपने पूजाघरमें रखा है ।
– (पू.) तनुजा ठाकुर, संस्थापिका (वैदिक उपासना पीठ)
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