सन्त किसे कहते हैं ?, समाजको इसकी आध्यात्मिक परिभाषाका ज्ञान न होनेसे अधिकांश व्यक्ति किसी भी तिलकधारी गेरुआवस्त्रधारी, जो गोसेवा करते हों या समाजसेवा करते हों उन्हें सन्त मान लेते हैं । वस्तुतः ऐसे लोगोंको अध्यात्ममें उन्नत कहते हैं या उनके पास दैवी शक्ति हो तो सिद्ध कहते हैं ! सन्त पद प्राप्त करना एक बहुत कठिन साध्यको प्राप्त करना है और किसी सन्तके अभिज्ञान हेतु या तो व्यक्तिके पास ईश्वरीय कृपा होनी चाहिए या उसकी सूक्ष्म इन्द्रियां जाग्रत होनी चाहिए या उनके पास साधनाका ठोस आधार होना चाहिए ! यह सब न होनेपर मात्र बाह्य वेशभूषा या थोडे-बहुत धर्मकार्य करनेसे किसीको सन्त नहीं कहा जा सकता है । हिन्दू राष्ट्रमें समाजको धर्मशिक्षणके साथ ही साधना सिखाई जाएगी; फलस्वरूप उनकी सूक्ष्म इन्द्रियां जाग्रत होंगी एवं वे सन्तोंका अभिज्ञान कर पाएंगे ।
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