शाब्दिक श्रद्धा और खरी श्रद्धा


एक साधक अपने गुरुके सत्संगमें जाना चाहते थे | उन्होंने गुरुजीसे कहा “ मैं आपके सत्संगमें जाना तो चाहता हूं, आपपर श्रद्धा भी है; परन्तु मुझे मेरी चाकरी(नौकरी) जानेका डर है; क्योंकि हमें शासनकी ओरसे  किसी भी प्रकारके संगठन से जुडनेकी अनुमति नहीं है” | गुरुने कहा “ ऐसा है तो न आयें” |
एक बार  इंदौरके परम पूज्य रामानन्द महाराजको,जब वे शिष्य रूपमें गुरुसेवा कर रहे थे, उनके उनके गुरु परम पूज्य भक्तराज महाराजने भजनमंडलीके साथ जाने हेतु कहा | परम पूज्य रामानन्द महाराज अपने मित्र परम पूज्य भक्तराज महाराजके मित्र थे; परन्तु गुरु आज्ञा अनुरूप, गुरुके देहत्याग उपरांत वे उनके मार्गदर्शनमें साधना करते थे |
परम पूज्य भक्तराज महाराज सदैव अपनी भक्तमंडलीके साथ भजन हेतु सम्पूर्ण भारत भ्रमण करते थे | और इसी क्रममें परम पूज्य रामानन्द महाराजकी चाकरीकी (नौकरीकी) सार अवकाश( छुट्टियां) समाप्त हो गयी थीं अब यदि वे अवकाश लेकर जाते तो उनका मासिक वेतनमें जितने दिन वे अनुपस्थित रहते उतने दिनकी आय काट ली जाती | वे एक गृहस्थ थे और मासिक आय न मिलनेपर गृहस्थीकी गाडी कैसे चलती ?; परंतु उनके लिए गुरु आज्ञा सर्वोपरि थीं | वे चाकरीमें  बिना बताए परम पूज्य भक्तराज महाराजके साथ सेवामें निकल पडे | अनेक दिन पश्चात जब वे पुनः अपने चाकरीपर गए तो उन्हें आश्चर्य हुआ कि उनसे किसीने नहीं पूछा कि वे इतने दिन कहां थे | इसके विपरीत मुंशीने कहा “ अपनी मासिक वेतन तो जाकर ले लो |”
उन्होंने कहा, ” इस बार वेतन नहीं मिलेगा इतने दिन अनुपस्थित जो था, मुंशीने हंसकर कहा “प्रतिदिन तो आते थे उपस्थिती बहीमें आपका प्रतिदिनका हस्ताक्षर है, हमसबके साथ काम करते थे, आप क्या कह रहे हैं, मेरी कुछ समझमें नहीं आ रहा है ?”   जब परम पूज्य रामानन्द महाराजने जाकर उपस्थिति बही देखी तो उनके अश्रु छलक पडे उनके गुरुने उनके स्थानपर आकार चाकरीकी थी | जब उनके सभी मित्रोंको सत्य ज्ञात हुआ और पता चला कि उनके साथ परम पूज्य रामानन्द महाराजने स्थानपर साक्षात् ईश्वर सेवा कर रहे और वे उनका अभिज्ञान( पहचान) न कर पाये तो उन्हें अत्यधिक दु:ख हुआ ! इसे कहते हैं खरी श्रद्धा और यह है उसकी परिणति, यह मैं कथा नहीं बता रही हूं, इंदौरके भक्तवत्सल आश्रममें आज भी वे विभूति विराजमान हैं, जिन्हें हम प्रेमसे ‘रामजी दादा’ कहते हैं ! इसलिए कहते हैं जिन पर विश्वास नहीं करना  चाहिए उनपर विशवास न करें, जिनपर विश्वास करना चाहिए उनपर सोच समझ कर विश्वास करें परंतु गुरुशास्त्रपर आंखें मूंदकर अंधविश्वास करनेवालेको ही भगवदप्राप्ति तो  होती ही है, उनके योगक्षेमका ध्यान भी गुरु रखते हैं; परंतु यह श्रद्धा भी ईश्वर प्रदत्त ही होती है  ! (२.१२.२०१३) -तनुजा ठाकुर



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