शंका समाधान


एक साधकने पूछा है कि क्या मैं अपनी पत्नीके साथ पूर्ण समय आकर आपके आश्रममें साधना कर सकता हूं ?
इस शंकाके समाधानसे अन्य ऐसे साधकोंको लाभ हो; अतः इसे उत्तरके साथ प्रकाशित कर रही हूं –
पूर्वकालमें अनेक ऋषि, गृहस्थ होते थे एवं वे गुरुकुलमें ही अपनी पत्नी एवं बच्चोंके संग रहते थे, इसका वर्णन अनेक धर्मग्रन्थोंकी कथाओंमें ज्ञात होता है । ब्राह्मण वर्ण होनेके कारण इन ऋषियोंका मुख्य धर्म अध्य्यन एवं अध्यापन होता था । ऋषि पत्नी, उनकी शिष्या समान होती थीं, वे उनकी व्यष्टि साधनाकी (यज्ञ कर्ममें) सर्व पूर्वसिद्धता (पूर्वतैयारी) करती थीं । सत्ययुगमें ऋषि पत्नी स्वयं भी वेदाध्ययन करती और करवाती थीं एवं उन्हें यज्ञ करनेका भी अधिकार प्राप्त था; किन्तु कालान्तरमें समाजकी सात्त्विकता न्यून होनेके कारण स्त्रियोंको मात्र उसमें सहभागी होनेका अधिकार दिया जाने लगा । साथ ही ऋषि-पत्नियां समष्टि साधनामें अर्थात गुरुकुलमें निवासीय विद्यार्थियोंको माता समान प्रेम देती थीं; क्योंकि गुरुकुलमें विद्यार्थी अल्पायुमें ही उपनयन संस्कारके पश्चात आ जाते थे एवं युवा होनेपर ही जाते थे । गुरुकुलके छात्रोंके भोजन, निवास आदि व्यस्थापन सम्बन्धी कार्य वे अपनी साधनाके रूपमें करती थीं और अपने पतिकी साधनामें अनुगामिनी बनकर, आध्यात्मिक प्रगति कर, मोक्षकी ओर अग्रसर होती थीं ।
आजके कालमें भी वैसे ही आश्रम व्यवस्थाकी आवश्यकता है; इसलिए हिन्दू राष्ट्रमें आश्रम भी गुरुकुल समान धर्मशिक्षण स्थल होगा, जहांसे सम्पूर्ण विश्वको धर्मकी शिक्षा दी जाएगी एवं आगामी कुछ वर्षोंमें सम्पूर्ण विश्वमें हिन्दू राष्ट्रकी स्थापनाका कार्य होगा; अतः यहां ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थी एवं संन्यासी सभी रहनेके अधिकारी होंगे और इस हेतु सबसे आवश्यक घटक होगा – ईश्वरप्राप्ति हेतु तीव्र उत्कण्ठा एवं समष्टि उत्थान हेतु अपना सर्वस्व अर्पण करनेकी सिद्धता होना !
आश्रम जीवनमें कुटुम्ब भावना निहित होनेके कारण, इसमें साधना कर वृद्ध होनेवाली वानप्रस्थियों एवं संन्यासियोंका ध्यान रखा जाएगा तथा गुरुकुलके आचार्यों, पुरोहितों व गृहस्थ साधकोंके बालक-बालिकाओंके लिए बडोंकी छत्रछाया, वृद्धोंका प्रेम एवं मार्गदर्शन, सब कुछ एक आदर्श कुटुम्ब व्यवस्था समान मिलेगा तथा उनके लिए गुरुकुल समान आदर्श शिक्षण व्यवस्था भी होगी । आगामी हिन्दू राष्ट्रमें प्रत्येक जनपदमें ऐसे अनेक आदर्श आश्रम होंगे, जिनके माध्यमसे तेजस्वी साधक जीवका निर्माण किया जाएगा, जो सम्पूर्ण विश्वमें सनातन वैदिक धर्मका ध्वज लहराएंगे ।
ऐसे ही आदर्श (मॉडल) आश्रमका निर्माण हमारे श्रीगुरु, गोवाके रामनाथीमें कर चुके हैं और अब वैदिक उपासना पीठ भी उसी दिशाकी ओर अग्रसर है ।
वैसे भी आनेवाला काल अत्यन्त भीषण है; अतः जिनके लिए भी सम्भव हो, वे शीघ्र अति शीघ्र किसी राष्ट्र और धर्म निमित्त कार्य करनेवाले सन्तकी शरणागत होकर पूर्ण समय साधना करनेका निर्णय लें, शेष गृहस्थ जिनकी पूर्ण समय साधना करनेकी सिद्धता नहीं है, वे एक क्षणका भी बिना व्यर्थ किए अपनी व्यष्टि और समष्टि साधनाको प्राथमिकता दें ! सन्तके संरक्षणमें रहनेसे आपातकालमें साधना भी होगी और स्वयंका एवं सम्पूर्ण कुटुम्बका रक्षण भी होगा । मात्र आश्रम जीवनमें ऐश्वर्ययुक्त साधन उपलब्ध नहीं हो पाते हैं; किन्तु जो भी हमारे लिए आवश्यक है, वह ईश्वर या गुरु हमें अवश्य देते हैं और साधनामें रहनेके कारण हमारा मन आनन्दमें रहता है और विषयभोगकी ओर नहीं भागता है । त्यागमय जीवन हमारी वैदिक संस्कृतिका आधार है और आश्रम ऐसी संस्कृतिका एक आदर्श स्वरूप होता है ! – तनुजा ठाकुर



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