"मैं आपके जालस्थलकी नियमित पाठिका हूं, मुझे आपसे एक प्रश्न पूछना है और वह इसप्रकार है हमने अनेक लोगोंसे सुना है कि स्त्रियोंको गायत्री मन्त्र या ॐ से युक्त मन्त्र नहीं जपना चाहिए ? क्या यह कथन सत्य है एवं यदि ऐसा है तो इसका कारण क्या है ? यह कृपया बताएं" ! - श्रीमती स्नेहल मिश्र, मोंट्रियल, कनाडा


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“मैं आपके जालस्थलकी नियमित पाठिका हूं, मुझे आपसे एक प्रश्न पूछना है और वह इसप्रकार है हमने अनेक लोगोंसे सुना है कि स्त्रियोंको गायत्री मन्त्र या ॐ से युक्त मन्त्र नहीं जपना चाहिए ? क्या यह कथन सत्य है एवं यदि ऐसा है तो इसका कारण क्या है ? यह कृपया बताएं” ! – श्रीमती स्नेहल मिश्र, मोंट्रियल, कनाडा

उत्तर : गायत्री मन्त्र, ॐ, महामुर्त्युन्जय मन्त्र, नवार्ण मन्त्र यह सब तेजोपसना अन्तर्गत आते हैं अर्थात् ये मन्त्र तेज तत्त्वसे सम्बन्धित हैं; अतः इन मन्त्रोंमें प्रचण्ड शक्ति समाहित होती है एवं जिसप्रकार paracetomol वटी अर्थात् गोली ज्वरके रोगको समाप्त कर देती है; किन्तु यदि किसी शिशुको ५०० MGकी वटी दे दी जाए तो उसी वटीसे उस शिशुके प्राण भी संकटमें पड सकते हैं, उसीप्रकार तेज तत्त्वसे सम्बन्धित मन्त्रकी शक्तिको समाहित करने हेतु साधकका आध्यात्मिक स्तर न्यूनतम ५०% अवश्य होना चाहिए एवं वर्तमानकालमें धर्मग्लानिके कारण विश्वकी ८५% जनसंख्याका आध्यात्मिक स्तर ३५% से न्यून है; इसलिए वर्तमानकालमें सामान्य जनमानसको पृथ्वीतत्त्वसे सम्बन्धित साधना करना अधिक उचित है एवं इससे उन्हें शीघ्र अनुभूतियां भी होती हैं; किन्तु आजकल स्वयंको पुरोगामी सिद्ध करने हेतु कुछ स्त्रियां बिना धर्मशास्त्रोंका अभ्यास किए या बिना साधना किए यह कहती हैं कि हिन्दू धर्ममें स्त्रियोंके साथ भेदभाव किया गया है; इसीलिए स्त्रियोंको ॐ और गायत्री मन्त्रजप जपनेसे प्रतिबन्धित किया गया है | सत्य तो यह है कि वैदिककालमें स्त्रियोंके भी उपनयन संस्कार हुआ करते थे एवं उन्हें भी वेदाध्ययनका अधिकार प्राप्त था | कालानुसार धर्मका ह्रास हुआ और सामान्य जनमानसकी सात्त्विकताका स्तर घटता चला गया परिणामस्वरूप मात्र स्त्रियोंको ही नहीं; अपितु सामान्य जनमानसको भी तेजोपासना हेतु मना किया गया | वस्तुतः इसप्रकारके विधान समाजके कल्याण हेतु ही बनाए गए हैं; परन्तु धर्मशिक्षणके अभावमें हिन्दुओंको ऐसे तथ्योंका अध्यात्मशास्त्रीय कारण ज्ञात नहीं हो पाता है एवं कुछ तथाकथित बुद्धिभ्रष्ट हिन्दू इस अज्ञानताका लाभ उठाकर दुष्प्रचार करते हैं एवं समाजको धर्मसे विमुख करना चाहते हैं | मैं भी एक स्त्री हूं और अपने १९ वर्षके आध्यात्मिक जीवनमें आजतक किसी भी सन्तद्वारा, कभी भी मेरे स्त्री होनेके कारण साधना बताते समय या कोई धार्मिक विधि करते समय किसी भी प्रकारका भेदभाव करते हुए नहीं पाया है, वरन् सभी सन्तोंने मेरे आध्यात्मिक स्तर अनुरूप ही मेरा मार्गदर्शन किये हैं फलस्वरुप हिन्दू धर्म अन्तर्गत बताए गए सभी विधानोंके प्रति मेरी निष्ठाको पुष्ट किया है |

इसका एक उदाहरण देती हूं, ख्रिस्ताब्द २००१ में, पितृदोष निवारणकी सूक्ष्म प्रक्रिया सीखने हेतु महाराष्ट्रके एक सन्त, परम पूज्य परुळेकर महाराज, जो नेत्रहीन सन्त हैं, उनके आश्रममें गुरु आज्ञा अनुसार एक विधि कराने हेतु गई थी | किसी कारणवश मेरा बडा भाई मेरे साथ नहीं आ पाया था, परन्तु मेरा छोटा भाई वहां उपस्थित था और मैंने उन सन्तको बताया भी था कि मेरा छोटा भाई आया है; परन्तु उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि आप ही यह विधि करें ! वस्तुतः हमारे श्रीगुरुने पितृदोषकी सूक्ष्म प्रक्रिया सीखने हेतु ही हमें उनके पास भेजा था और यह तथ्य परम पूज्य परुळेकर महाराज जानते थे; इसलिए उन्होंने मुझसे यह विधि करवाई | इस घटनाक्रमसे मैंने यह सीखा कि अध्यात्मके खरे अधिकारी अर्थात् सन्त कोई भी भेदभाव नहीं करते एवं वे आध्यात्मिक पात्रता अनुरूप ही सर्व आज्ञा देते हैं, ऐसेमें उनकेद्वारा लिखित धर्मग्रन्थोंमें स्त्रियों के साथ भेदभाव कैसे हो सकता है ? किंचित सोचें !

अब हम स्त्रियोंको तेजोपासनाकी साधना क्यों नहीं करना चाहिए ? इसका कारण बताती हूं | इस विषयमें हमारे श्रीगुरु परात्पर गुरु डॉ. आठवलेने अत्यधिक वैज्ञानिक पद्धतिसे इसका आधारभूत शास्त्र बताया है | हमारे श्रीगुरु अनुसार स्त्रियोंकी जनेन्द्रियां शरीरके अन्दर होती हैं; अतः यदि किसी स्त्रीका आध्यात्मिक स्तर ५०% से न्यून हो एवं उनके जीवनमें सद्गुरुका प्रवेश न हो और वे अपने मनसे तेजोपसना करती हों तो ऐसेमें ॐ या गायत्री मन्त्र या अन्य किसी तेज तत्त्वसे सम्बन्धित मन्त्रसे उत्पन्न शक्तिका संचार ऊपरी दिशामें नहीं हो पाता है अर्थात् उस शक्तिका संचार सुषुम्ना नाडीमें स्थित चक्रोंके भेदन हेतु नहीं हो पाता है और उस संग्रहित शक्तिसे स्त्रियोंके प्रजनन सम्बन्धी अंग जो शरीरके अन्दर होते हैं, उनमें कष्ट होने आरम्भ हो जाते हैं; ऐसेमें जो भी स्त्रियां गर्भधारणकी आयुसीमामें होती हैं, उन्हें प्रजननके समय उससे सम्बन्धित कष्ट हो सकते हैं या मासिक धर्मसे सम्बन्धित कष्ट हो सकते हैं; अतः ऐसी स्त्रियोंको अपने मनसे तेजोपासना करना टालना चाहिए |

पुरुषोंकी जनेन्द्रियां शरीरके बाहर होनेके कारण उनकी आध्यात्मिक क्षमता यदि न्यून भी हो तो भी कुछप्रमाणमें शक्ति बाहर निकल जाती है; परिणामस्वरूप उनके जनेन्द्रियोंपर विपरीत प्रभाव नहीं पडता है; परन्तु ध्यान रखें, यदि आध्यात्मिक क्षमता अल्प हो तो पुरुषोंको भी तेज तत्त्वकी उपासनासे कष्ट हो सकता है, मात्र यदि तेजोपासनाकी साधना सद्गुरुकी बताई हो तो स्त्री हो या पुरुष, किसीको कष्ट नहीं होता; क्योंकि सद्गुरु तेजोपसनासे उत्पन्न हुई शक्तिको नियन्त्रित कर उसे उचित दिशा देनेमें समर्थ होते हैं या वे गुरुमन्त्रमें उतना ही शक्तिपात करते हैं, जितना जप करनेवाला साधक सहन कर सकता है | यदि कोई स्त्री ६०% से अधिक आध्यात्मिक स्तरपर हो तो वह तेजोपसना अवश्य कर सकती है; किन्तु यह सम्भव है कि ऐसा करनेसे उसकी सात्त्विकतामें तीव्र गतिसे वृद्धि होनेके कारण उसे ३० से ३५ वर्षकी आयुमें ही रजोनिवृत्ति प्राप्त हो जाए और वह गर्भ धारण न कर सके; अतः यदि सामान्य गृहस्थ स्त्रियां जिनका आध्यात्मिक स्तर ५०% से न्यून हो तथा वे गर्भ धारणकी आयुमें हों एवं वे सामान्य वैवाहिक जीवन व्यतीत करना चाहती हों तो उन्हें तेजोपासना करना टालना चाहिए |

ख्रिस्ताब्द २०१२ में एक स्त्री साधिकाने उत्तरप्रदेशके अलीगढ जनपदमें एक सार्वजनिक प्रवचनके मध्य अपनी शंका समाधानके मध्य यह स्वीकार करते हुए कहा था कि वह अपने मनसे गायत्रीका जप करती है, उसे मासिक धर्मसे सम्बन्धित कष्ट भी हैं और साथ ही उन्हें अत्यधिक क्रोध आता है | उस स्त्रीका आध्यात्मिक स्तर ४५ % था एवं तेजोपासना छोडनेके पश्चात् उनके कष्टोंकी तीव्रता न्यून हो गई | अपने आध्यात्मिक शोधमें मैंने पाया है कि कुछ स्त्रियोंको तेजोपासनासे अत्यधिक स्वेद (पसीना) आता है एवं कुछ तो अस्थिर (अशान्त) प्रवृतिकी हो जाती है तथा कुछ स्त्रियोंके शरीरमें शक्ति तत्त्वमें वृद्धि होनेके कारण शारीरिक वेदनाओंका प्रमाण बढ जाता है | एक सामान्यसा शास्त्र ध्यान रखें कि शक्ति उपासना करनेसे जब शक्तितत्त्वमें वृद्धि हो जाती है एवं यदि उसे आध्यात्मिक प्रगति हेतु योग्य दिशा न मिले तो शक्ति उपासक स्त्री हो या पुरुष वह शक्ति स्वेद, वेदना, निद्रानाश, अस्थिरता या क्रोधके रूपमें भी बाहर आनेका प्रयास करती है | मैंने यह भी पाया है कि अपने मनसे शक्ति उपासना करनेवालेकी सूर्य और चन्द्र नाडियोंका सामंजस्य भी बिगड जाता है | इसीलिए अपने मनसे तेजोपसना करना टालना चाहिए |
स्त्रियों सनातन धर्ममें जो भी कुछ बताया गया है, प्रथम उसका कारण जान लें ! तत्पश्चात् साधना कर उसकी अनुभूति लेनेका प्रयास करें एवं उसके उपरान्त यदि आवश्यकता हो तो ही अपने विचारोंको व्यक्त करें ! एक और महत्त्वपूर्ण तथ्य बता दें कि वर्तमानकालमें अनेक साधकोंको अनिष्ट शक्तियोंके कारण अत्यधिक कष्ट हो रहा है; अतः आवश्यकता पडनेपर ‘ॐ’ को अपने आराध्य देवताके मन्त्र या नामजपके साथ जोड सकते हैं; किन्तु यह ध्यान रखें कि मन्त्रमें ‘ॐ’का उच्चारण दीर्घ स्वरमें न हो और गायत्री उपासना तो मात्र उपनयनधारी, त्रिकाल संध्या करनेवाले द्विज ही कर सकते हैं, जो सर्व कर्मकाण्डोंका विधि-विधान पूर्वक पालन करते हैं, शेष कोई भी गायत्री मन्त्र जपनेका अधिकारी नहीं है; क्योंकि गायत्री मन्त्र इस ब्रह्माण्डके सर्व शक्तिशाली मन्त्रोंमेंसे एक है; अतः बिना पात्रता निर्माण किए, उस मन्त्रको जपना अर्थात् अग्निके साथ खिलवाड करने समान है | आजकल अनेक लोग गायत्री मन्त्रको किसी गायिका या गायिकाके ध्वनिमुद्रित स्वरमें लगाकर रखते हैं, जो पूर्णत: अनुचित है | एक तो गायत्री मन्त्रका ऊंचे स्वरमें बिना यज्ञोपवीतधारीद्वारा किया जाना अनुचित है और वह भी बिना यज्ञमें आहुति डाले ऊंचे स्वरमें करना और भी अधिक शास्त्र विरुद्ध है | यज्ञोपवीत संस्कारके समय भी आचार्य बटुकको उसके कानमें यह मन्त्र देते हैं; किन्तु पुनः धर्म शिक्षणके अभावके कारण यह सब तथ्य अनेक हिन्दुओंको ज्ञात नहीं है | ध्यान रखें ! गायत्री मन्त्रका मात्र जप करनेसे ही नहीं; अपितु सतत् लगाकर रखनेसे भी घरमें शक्तितत्त्वमें वृद्धि होती है एवं यदि घरके सदस्योंका आध्यात्मिक स्तर ५०%से अधिक न हो तो उस घरके सदस्योंको अनेक प्रकारके कष्ट हो सकते हैं | वस्तुतः सनातन धर्मका सम्पूर्ण अध्यात्मशास्त्र सूक्ष्म स्पन्दनशास्त्रपर आधारित है; किन्तु सूक्ष्मका ज्ञान नहीं होनेके कारण आजका हिन्दू दिग्भ्रमित है; अतः शास्त्र जानकर ही योग्य कृति करें एवं अपने जीवनको आनन्दी बनाएं ! – तनुजा ठाकुर

 



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