शंका समाधान


एक साधकने पूछा है कि वर्तमान कालके ढोंगी गुरुओंका भविष्य क्या है ?
वर्तमान कालमें अनेक व्यक्ति, गुरु स्थानके योग्य नहीं होनेपर गुरुपदपर आसीन होकर अपने भक्तोंकी संख्या नित्य बढा रहे हैं । ऐसे गुरु अपने साधकोंमें साधकत्व निर्माण करनेको महत्त्व नहीं देते हैं; क्योंकि जब उनमें ही यह गुण नहीं है तो वे अपने भक्तोंमें कैसे निर्माण करेंगे ? ऐसे सभी तथाकथित स्वयंभू धर्मगुरुओंको शीघ्र अति शीघ्र किसी खरे सन्तके शरणागत होकर अपनी चूक स्वीकार कर योग्य साधना आरम्भ कर देनी चाहिए अन्यथा आनेवाले भीषणकालमें जब वे अपने भक्तोंका रक्षण करनेमें असक्षम होंगे तब उनकी छवि तो मलिन होगी ही, उनके भक्तगणोंका उनपरसे विश्वास भी उठ जायेगा और वे उन्हें छोडकर चले जायेंगे; अतः समय रहते ऐसे लोगोंने अपना आत्मनिरिक्षण कर, अगले स्तरकी साधनाका प्रयास आरम्भ करना चाहिए ।
कोई भी साधक जो अन्तर्मुखी होता है उसे अपने दोष, अहं तथा अपने साधनाके विषयमें जानकारी होती ही हैं; ऐसेमें उन्होंने अपनेसे उच्च स्तरके उन्नत, संत या गुरुसे विनम्रतापूर्वक मार्गदर्शन लेनेका प्रयास करना चाहिए ।
वर्तमान कालमें कलिके एवं सूक्ष्म जगतकी अनिष्ट शक्तियोंके प्रभावके कारण ५० % तथाकथित संतोंको लगता है कि वे सन्त हैं, शेष जान बूझकर अपने अहंकी पुष्टि हेतु संत होनेका अभिनय करते हैं । ख्रिस्ताब्द २०२५ के पश्चात् जब कलिका प्रभाव न्यून हो जाएगा एवं ऐसे तथाकथित धर्मगुरुओंके आध्यात्मिक स्तरको जब सार्वजानिक किया जायेगा तो उनके पांवके नीचेकी भूमि खिसक जाएगी और ये लोग स्वतः ही अपने कुकर्मोंका  पश्चाताप करेंगे तथा कठोर साधना रुपी प्रयाश्चित लेकर अपने पापकर्मोंको न्यून करेंगे । ऐसे धर्मगुरु अपने स्वाभाव दोषों एवं उच्च अहंकारके कारण ही आज कलि एवं अनिष्ट शक्तियोंके प्रभावमें हैं या उनसे आवेशित हैं ! इसीलिए वे सर्व प्रकारके अधर्म करनेमें संकोच नहीं करते हैं ।  – तनुजा ठाकुर (२४.१०.२०१७)



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