शंका समाधान


प्रश्न : मैं आपके लेखोंको फेसबुकपर नित्य पढता हूं और मुझे उसे पढते समय आनन्दकी अनुभूति होती है | आपके बताए अनुसार मैं नामजप कर रहा हूं और मुझे भान हो रहा है कि धीरे-धीरे मेरा नामजप बिना प्रयत्नके सहज ही अविरत होने लगा है जबकि मैं कभी-कभी कुछ और सोच रहा होता हूं तब भी वह होता है । ऐसा लगता है कि मेरा मन दो स्तरोंपर कार्य कर रहा हो ।  मुझे मात्र नामजप आरम्भ करनेकी आवश्यकता होती है और मेरा अन्तर्मन स्वतः ही जप करने लगता है । ऐसा लगता है कि जैसे मनमें कोई संगीत अखण्ड चल रहा हो नामजपके माध्यमसे । मेरा प्रश्न है कि क्या यह अवस्था योग्य है या मैंने नामजपके लिए कोई चेतन मनसे प्रयास करना चाहिए । मैं प्रातः जब सैर करने जाता हूं तब प्रयत्नपूर्वक नामजप करनेका प्रयास करता हूं; परन्तु उस समय मुम्बईकी “चहल-पहल”में मनमें अनावश्यक विचार आते रहते हैं । – दीपक टौंक, मुम्बई

उत्तर : जान कर आनन्द हुआ कि आपने नामजप सातत्यसे करना आरम्भ कर दिया है । जैसे मैंने आपको पूर्वमें भी बताया था कि आपका आध्यात्मिक स्तर ५०% है और ऐसेमें नामजपका अखण्ड और अन्तर्मनमें होना सहज बात है । आपने बताया भी था कि आप मुझसे मिलनेसे पूर्व भी अखण्ड नामजप करनेका प्रयास करते थे; अतः वर्तमान समयमें मात्र जप परिवर्तित हो गया है । मनकी स्थितिमें कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया है; अतः थोडे समय प्रयास करनेके पश्चात् नामजपका लयबद्ध होना, उससे आनन्द आना, उसका अखण्ड होना यह सब आपके आध्यत्मिक स्तरके अनुरूप एक स्वाभाविक अवस्था  है ।
मनके दो भाग होते हैं एक है बाह्य मन और दूसरा है अन्तर्मन । अन्तर्मनके संस्कार हमारे साथ जन्म-जन्मांतर तक रहते हैं; अतः जो भी साधना हम करते हैं, वह हमें मोक्ष मिलने तक हमारे साथ चलती है । इंद्रियोंके अनुरूप बद्ध होकर बाह्य मन अन्य विचार कर सकता है; परन्तु नामजपका संस्कार अन्तर्मनमें दृढ हो जाए तब नामजप अखण्ड होने लगता है और इसकी अनुभूति आपको हो रही है । मनुष्य अष्टावधानी होता है अर्थात् एक साथ आठ कार्य कर सकता है, जैसे गाडी चलाते समय हम बातें भी करते हैं, संगीत भी सुनते है, मनसे विचार भी करते हैं और बुद्धिसे निर्णय भी लेते हैं ।  आपको भी इस स्थितिकी अनुभूति हो रही है । आप प्रातः विचरणके (सैरके) समय नामजप करते हैं और उस समय मनमें विचार आते हैं, यह भी स्वाभाविक है; क्योंकि इंद्रियां तो अपना कार्य करेंगी ही; अतः अब आप नामजपके आगामी चरणमें जानेका प्रयास करें । अपने घरके पूजा-घरमें या कोई एकांत स्थानपर थोडी देर नेत्र बन्द कर एकाग्रतापूर्वक सांसके साथ लयबद्ध नाम जप करनेका प्रयास करें और ऐसा करनेसे आपको आरम्भमें आनन्द मिलेगा और धीरे-धीरे आप निर्विचार अवस्थाकी अनुभूति ले पाएंगे । आरम्भमें यह अवस्था कुछ क्षणोंके लिए ही आएगी; परन्तु थोडे समय नियमित अभ्यास करनेपर इस अवस्थाका कालखण्ड बढने लगेगा । वस्तुतः निर्विचारको साध्य करना यह साधना करनेका मुख्य उद्देश्य होता है एवं नामजप यह इस स्थितिको साध्य करने हेतु एक महत्त्वपूर्ण साधन है | – तनुजा ठाकुर
(टिपण्णी : इस साधकसे हमारी भेंट धर्मयात्राके मध्य ख्रिस्ताब्द २०१२ में मुम्बईमें हुई थी |)



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