धर्म व साधानके अभावमें आजका मनष्य आनंद किसे कहता है उसकी अनुभूति नहीं ले पाता है इसलिए आजकल इतने सारे हंसोड कार्यक्रम होने लगे हैं ! ऐसे कार्यक्रममें जैसे एक व्यक्तिको श्मशानकी किसी मित्र या शुभचिंतककी मृतदेहको जलते हुए देखकर क्षणिक वैराग्य होता है वैसे ही ऐसे कार्यक्रमको देखकर लोगोंको क्षणिक सुख मिलता है ! विडंबना तो देखें कि ऐसे हंसोड कार्यक्रम करनेवाले लोगोंको भी अवसाद होता है अर्थात जो सबको हंसाते हैं वे स्वयं तनावग्रस्त या मानसिक कष्टसे ग्रसित होते हैं, ऐसा ही एक हंसोड कार्यक्रम करनेवाल नट कार्यक्रमसे समय ही चल बसा, लोगोंको लगा कि वह उसके नाटकका ही भाग है ! श्वाश्वत सुखप्राप्तिका एक ही माध्यम है धर्मपालन एवं सातत्यसे साधना करना !
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