शिवपर दुग्ध अभिषेक क्या खरे अर्थोंमें धनका अपव्यय है ?



कुछ अज्ञानी व्यक्ति समाजमें यह प्रसारित कर रहे हैं कि इस शिवरात्रि शिवको दुग्ध अभिषेक करनेके स्थानपर उस दुग्धको दरिद्र लोगोंके मध्य बांटना अधिक योग्य होगा ! ऐसे व्यक्ति सम्पूर्ण वर्ष भर ऐसे आर्थिक दृष्टिसे विपन्न व्यक्तियोंके लिए क्या करते हैं यह हम सब जनाना चाहेंगे ! सम्पूर्ण सृष्टिके सृजनकर्ताके प्रति ऐसे भाव रखनेवाले कृतघ्न व्यक्तिको धर्मद्रोही कहना ही उचित होगा !

ऐसे धर्मद्रोहियोंको यह जानना आवश्यक है कि यह सृष्टिके जो संचालक तत्त्व हैं, उनके प्रति भी हमारे कुछ कर्तव्य होते हैं और ऐसे सर्वशक्तिमान तत्त्वोंके प्रति अपनी कृतज्ञताका प्रदर्शन करनेका भक्तिमार्ग अंतर्गत कर्मकांड एक सूक्ष्म विज्ञान आधारित एवं शास्त्र सम्मत कर्म है जिससे देवोंकी कृपा हम सामान्य प्राणियोंपर बनी रहती है ! प्रत्येक व्यक्तिको पाँच ऋण देने होते हैं वे हैं – देव , ऋषि, पितर, समाज और अतिथि | इस सृष्टिके संचालन में जो भी शक्तियां कार्यरत हैं उन्हें कृतज्ञता स्वरूप हमने देवता माना है और उन्हें प्रसन्न रखना हमारा धर्म है | वैदिक कालसे हम ऐसे सभी शक्तियों हेतु यज्ञमें आहुति देते आए हैं परंतु मैकाले शिक्षण पद्धति पोषित आधुनिक (कु)पुत्रोंको यह स्वीकार्य नहीं ! आधुनिकता, नास्तिक वैज्ञानिकता एवं कृतघ्नताकी परिसीमासे त्रस्त आजका मानव, पर्यावरणकी मात्र दो सौ वर्षोंमें इतनी दुर्दशा कर चुका है कि अब तो मनुष्यके अस्तित्त्वपर भी प्रश्न-चिन्ह निर्माण होने लगा है | हिन्दू धर्मके तर्क संगत, आध्यात्मिक एवं धार्मिक कृत्योंका शास्त्र जाने बिना समाजको दिग्भ्रमित करना इंका मूल धर्म होता है, यह कुतर्क अन्य धर्मालंबियोंके प्रति दें तो इनके मानवतावादके सिद्धांतको मानें !
शिवरात्रिके कालमें शिव तत्त्व एक सहस्र पट अधिक कार्यरत रहता है, जो फल उपासना कांड के साधकको शिवके पंचाक्षर जप (ॐ नमः शिवाय)से प्राप्त होता है वही भक्ति मार्गके कर्मकांडी साधकोंको शिवके अभिषेकसे प्राप्त होता है, ऐसा करनेसे शिवकी मानव पर कृपा प्राप्त होती है , उनके तत्व मानवके पिंडमें आकृष्ट होते हैं एवं आध्यात्मिक प्रगति होती है , योग्य प्रकारसे शिवकी आराधनासे वातावरणमें शिव तत्त्व फैलता है जिससे रज- तमके कणोंका विघटन होता है, यह इन मूढ़ोंको बताना परम आवश्यक है ! –तनुजा ठाकुर (२३.२.२०१४)



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