कभी युद्ध न हारनेवाले महान सेनानायक श्रीमन्त बाजीराव पेशवा प्रथम


छत्रपति शिवाजी महाराजके उपरान्त, देशको बाजीराव पेशवाके (प्रथम) रूपमें एक महापराक्रमी योद्धा  प्राप्त हुआ । बाजीराव पेशवाने २१ वर्षोंके अपने गौरवशाली कार्यकालमें एक भी लडाई नहीं हारी । खड्ग (तलवार) चलानेमें दक्ष, निपुण अश्वारोही (घुडसवार), सर्वोत्तम रणनीतिकार और दक्ष नेताके रूपमें प्रख्यात बाजीराव प्रथमने मात्र बीस वर्षकी आयुमें अपने पितासे उत्तराधिकारमें पेशवाका दायित्व ग्रहण किया और अपने उत्कृष्ट सैन्य जीवन एवं कुशल नेतृत्वद्वारा भारतके इतिहासमें एक विशेष स्थान बना लिया ।
बाजीराव प्रथम एक महान राजनायक और नेतृत्वकुशल सेनापति थे । उन्होंने अपनी दूरदृष्टिसे  देख लिया था कि मुगल साम्राज्य छिन्न-भिन्न होने जा रहा है और उन्होंने महाराष्ट्र क्षेत्रसे बाहरके हिन्दू राजाओंकी सहायतासे मुगल साम्राज्यके स्थानपर ‘हिन्दूपद-पादशाही’ स्थापित करनेकी योजना  बनाई थी । इसी उद्देश्यसे उसने मराठा सेनाओंको उत्तर भारत भेजा,  जिससे पतनोन्मुख मुगल साम्राज्यकी जडपर अन्तिम प्रहार किया जा सके । उसने ख्रिस्ताब्द १७२३ में मालवापर आक्रमण किया और अगले वर्ष स्थानीय हिन्दुओंकी सहायतासे गुजरात जीत लिया ।
बाजीराव प्रथमने मराठा शक्तिके प्रदर्शन हेतु २९ मार्च, १७३७ को देहलीपर आक्रमण किया । मात्र तीन दिनके दिल्ली प्रवासके मध्य उसके भयसे मुगल सम्राट मुहम्मदशाह दिल्ली छोडनेके लिए सिद्ध हो गया था । इसप्रकार उत्तर भारतमें मराठा शक्तिकी सर्वोच्चता सिद्ध करनेके प्रयासमें बाजीराव प्रथम सफल रहे थे । उन्होंने पुर्तगालियोंसे बसई और सालसिट प्रदेशोंको छीननेमें सफलता प्राप्त की थी । छत्रपति शिवाजी महाराजके पश्चात् बाजीराव प्रथम ही दूसरे ऐसे मराठा सेनापति थे, जिन्होंने ‘गुरिल्ला’ युद्ध प्रणालीको क्रियान्वित किया था । वे ‘लडाकू पेशवा’ के नामसे भी जाने जाते हैं । वस्तुतः उन्होंने अपनी सैन्य कुशलताके कारण १८ वीं शताब्दीके मध्यमें अपने भारतका मानचित्र ही परिवर्तित कर  दिया था ।
उनके सैन्य अभियान उनकी बुद्धिमताके अद्वितीय उदाहरण हैं
बाजीरावकी सबसे बडी सफलता महोबाके निकट बुंगश खानको हराना था, जिसे मुगलसेनाका सबसे वीर सेनापति माना जाता था और उसे तब परास्त किया जब वह बुन्देलखण्डके वृद्ध हिन्दू राजाको  कष्ट दे रहा था । बाजीरावकेद्वारा प्रदान की गई इस सैन्य सहायताने छत्रसालको सदैवके लिए उनका आभारी बना दिया । यह कहा जाता है कि छत्रसाल मोहम्मद खान बुंगशके विरुद्ध आत्मरक्षाकी मुद्रामें आ गए थे, तब उन्होंने निम्न दोहेके माध्यमसे बाजीरावके पास एक सन्देश भेजा था :
जो गति भई गजेन्द्रकी, वही गति हमरी आज ।
बाजी जात बुन्देलकी, बाजी रखियो लाज
।।
जब बाजीरावको यह सन्देश प्राप्त हुआ तब वह अपना भोजन ग्रहण कर रहे थे, वे भोजन छोडकर तुरन्त उठ खडे हुए और घोडेपर सवार होकर कुछ सैनिकोंको लेकर यह निर्देश देते हुए तुरन्त निकल गए कि जितनी शीघ्र हो पूरी सेना पीछेसे आ जाए । शीघ्र ही बुंगशको हरा दिया गया और तब छत्रसालने प्रसन्न होकर मराठा प्रमुखको अपने राज्यका एक तिहाई भाग प्रदान कर दिया ।
औरंगजेब के पश्चात् लडखडा रहे मुगलोंद्वारा जारी धार्मिक असहिष्णुताका विध्वंस करनेके  लिए  बाजीराव उठ खडे हुए थे और एक नायकके रूपमें मुगल शासकोंके आक्रमणोंसे हिन्दू धर्मकी रक्षा की थी । मुगल, पठान और मध्य एशियाईके राजा महान योद्धा बाजीरावकेद्वारा पराजित हुए, निजाम-उल-मुल्क, खान-ए-दुर्रान, मुहम्मद खान ये कुछ ऐसे योद्धाओंके नाम हैं, जो मराठोंकी वीरताके आगे धराशायी हो  गए । २८ अप्रैल, १७४० को नर्मदा नदीके किनारे उनकी मृत्यु हो गई थी ।
बाजीरावकी महान उपलब्धियोंमें भोपाल और पालखेडका युद्ध, पश्चिमी भारतमें पुर्तगाली आक्रमणकारियोंके ऊपर विजय इत्यादि उल्लेखनीय हैं ।
बाजीराव पेशवाने ४१ से अधिक युद्ध लडे और उनमेंसे किसीमें भी वे पराजित नहीं हुए । वे विश्व इतिहासके उन तीन सेनापतियोंमें सम्मिलित हैं, जिन्होंने एक भी युद्ध नहीं हारा ।



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