स्मरणहीनता रुपी दुर्गुणको दूर कैसे करें ? (भाग – ३)


हमारे देशमें वैदिक लोगोंकी स्मरणशक्ति इतनी तीक्ष्ण हुआ करती थी कि गुरु अपने शिष्यको अपनी साधनासे अर्जित ज्ञान उसकी स्मृतिमें डाल कर निश्चिन्त हो जाते थे; क्योंकि उन्हें ज्ञात था कि वह यथावत अगली पीढीके शिष्योंतक उनके शिष्यद्वारा पहुंच जाएगी व संरक्षित भी रहेगी ! अर्थात गुरुद्वारा अर्जित ज्ञानके महासागरको शिष्य अपनी स्मृतिमें संजोकर रखनेका सामर्थ्य रखते थे ! वहीं आजकल लोग अपनी दिनचर्यासे सम्बन्धित बातें ही अनेक बार भूल जाते हैं ! इसपर शोध करते समय मुझे भान हुआ कि जिनकी जीवन शैली अधिक तामसिक होती है उनमें स्मरणहीनताका दुर्गुण भी अधिक होता है ! जैसे जो लोग बहुत तीखे, चटपटे, तले हुए एवं बाहरके भोजन अधिक ग्रहण करते हैं या उन्हें वह अधिक प्रिय होता है, तमोगुण भी अधिक प्रमाणमें होता है और आज सर्वसामान्य व्यक्ति योग्य साधनासे कोसों दूर होता है, ऐसेमें नियमित ऐसी तमोगुणी जीवन शैलीसे उनके मन एवं बुद्धिपर तमोगुणका सूक्ष्म काला आवरण निर्माण हो जाता है ! कुछ लोग तो भोजमें (पार्टीमें) निमन्त्रणके जैसे मार्ग ताकते रहते हैं, मैंने देखा है ऐसे सभी लोगोंमें अध्यात्म विषयक तो जाने दें माया विषयक बातें भी ध्यानमें नहीं रहती हैं ! इसलिए यदि सात्त्विक और तीक्ष्ण बुद्धि चाहिए तो सात्त्विक भोजन करनेकी वृत्ति अपने भीतर अंतर्भूत करें !
 तो आईये आपको संक्षेपमें आहारके विषय आज बता दें । वस्तुत: आहार तीन प्रकारके होते हैं  – सात्त्विक, राजसिक व तामसिक । मनुष्यके जीवनमें तीनोंका भिन्न-भिन्न प्रभाव पडता है ।
    सात्विक आहार वह होता है जिसमें सत्व गुणकी प्रधानता हो , अर्थात जिसे किसी भी प्रकारके वैर भाव अथवा किसीको पीडा पहुंचाकर न प्राप्त किया गया हो, उसे बनाते समय योग्य रूपसे संस्कारित किया गया हो ! आयुर्वेद में कहा गया हैं, सात्त्विक आहारके सेवनसे मनुष्य सदाचारी बनता है । आध्यात्मिक प्रगतिके इच्छुक व्यक्तिको सात्विक आहारका ही सेवन करना चाहिए !
छांदोग्य उपनिषदमें कहा गया है –
आहारशुद्धौ सत्तवशुद्धि: ध्रुवा स्मृति:। 
स्मृतिलम्भे सर्वग्रन्थीनां विप्रमोक्ष:॥ 
अर्थात, आहार शुद्ध होनेसे अंत:करण शुद्ध होता है और इससे ईश्वरमें स्मृति दृढ होती है । स्मृति प्राप्त हो जानेसे हृदयकी अविद्याजनित सभी गांठे खुल जाती हैं । सात्त्विक आहार, हमारे मनको शांति प्रदान करता है एवं इसके सेवनसे पवित्र विचार उत्पन्न होते हैं । इसमें भिन्न प्रकारके फल, शाक(सब्जी), दूध (कम मात्रामें और अधिक उष्ण नहीं), घी, मक्खन, सूखा मेवा, मोटा अनाज, दालें आदि सम्मिलित हैं, अर्थात इसमें सुपाच्य एवं हलके पदार्थ, जोकि कम मात्रामें खायें जाएं आते हैं ।
राजसिक भोजन, ये हमारे मनको बहुत चंचल बनाता है तथा उसे विषय भोगकी ओर प्रवृत करता है , इसमें मांस, मछली, केसर, पेस्ट्री, पिज्जा, ब्रेडके अतिरिक्त  मिर्च, मसाले आदि तथा सब उत्तेजक पदार्थ जैसे चाय, कॉफी एवं अधिक मात्रामें खाया गया आहार एवं भोज आदिमें बिना संस्कारित किए हुआ आहार आता है। तामसिक भोजन, ये हमारे अंदर आलस, क्रोध,आदि उत्पन्न करता है । इसमें अंडे, मुर्गेका मांस (चिकेन), बासी भोजन, मद्य, तम्बाकू, मादक पदार्थ, भारी और अत्यधिक तेल मसालेयुक्त भोजनलयमें बने हुए आहार आते हैं । वास्तवमें किसी भी भोज्य पदार्थकी बहुत अधिक मात्रा तामसिक प्रभाव रखती है । राजसिक और तामसिक भोजनसे बुरे विचार उत्पन्न होते हैं । सात्विक भोजनसे शुद्ध विचार आते हैं । शुद्ध विचारोंसे बुद्धि शुद्ध होती है जो आध्यात्मके मार्गकी ओर ले जाती है !


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