जो भी स्त्री अपने सहज लोक लाज को त्याग कर अंग प्रदर्शन कर अन्यों में वासना को जागृत करती हैं वह भी महापाप की अधिकारी होती है ! स्त्रियों का नैसर्गिक अलंकार उसकी स्त्री सुलभ लज्जा है , यदि वह समाप्त हो गया तो सब कुछ समाप्त हो गया ! इतिहास साक्षी है अधिकांश अंग प्रदर्शन करने वाली प्रसिद्ध स्त्री कलाकार के व्यावहारिक जीवन पैसे और प्रतिष्ठा (??? ) होने पर भी क्लेशप्रद, अस्थिर एवं मानसिक संताप युक्त रहा है !! कुछ ने तो आत्महत्या भी किए है और अनेक मद्यपान और अन्य प्रकार के व्यसन की शिकार हो गयी हैं अतः अंग प्रदर्शन करनेवाली स्त्रीयां समाज की आदर्श नहीं हो सकती हैं !! -तनुजा ठाकुर
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