शोधमें दावा, पूजा-पाठ करनेवाले धार्मिक लोग रहते हैं अधिक प्रसन्न !


जनवरी ७, २०१९

 

धार्मिक प्रवृत्ति और पूजा-पाठ करनेवाले लोग नास्तिकोंकी तुलनामें अधिक प्रसन्न रहते हैं । एक नूतन शोधमें इस बातका दावा किया गया है । इस शोधका कहना है कि जो लोग धार्मिक गतिविधियोंमें सक्रिय रूपसे भाग लेते हैं, ऐसे लोग शेष लोगोंकी तुलनामें अधिक प्रसन्न रहते हैं । इस शोधमें लगभग दो दर्जनसे अधिक देशोंसे सूचनाएं एकत्र करके यह बात बताई गई है ।

‘प्यू रिसर्च’ शोधका दावा है कि नास्तिकोंके स्थानपर आस्तिक लोग अधिक प्रसन्न रहते हैं । यद्यपि अभीतक धर्म और प्रसन्नतामें कोई भी वैज्ञानिक सम्बन्ध सिद्ध नहीं हुआ है; परन्तु इस शोधका कहना है कि जो लोग आस्तिक होते हैं, भाग्यमें विश्वास रखते हैं और पूजा-पाठ करते हैं, वो लोग नास्तिकोंकी तुलनामें अधिक प्रसन्न रहते हैं । इस शोधको करनेके लिए शोधकर्ताओंने तीन श्रेणी बताई थीं । इनमें धार्मिक रूपसे सक्रिय, धार्मिक रूपसे निष्क्रिय और किसी भी धर्मसे नहीं जुडे लोगोंको सम्मिलित किया गया था ।
इस सर्वेक्षणमें अमेरिकाके ३६ प्रतिशत धार्मिक प्रवृत्तिके लोगोंने नास्तिकोंकी तुलनामें स्वयंको अधिक प्रसन्न बताया ।
इस सर्वेक्षणमें अमेरिकाके ३६ प्रतिशत धार्मिक प्रवृत्तिके लोगोंने नास्तिकोंकी तुलनामें स्वयंको अधिक प्रसन्न बताया ।
इस सर्वेक्षणमें अमेरिकाके ३६ प्रतिशत धार्मिक प्रवृत्तिके लोगोंने नास्तिकोंकी तुलनामें स्वयंको अधिक प्रसन्न बताया । इतना ही नहीं किसी भी धर्मको न माननेवाले और धार्मिक विश्वासोंपर भरोसा नहीं करनेवाले लोगोंकी तुलनामें धार्मिक विश्वासोंको माननेवाले लोगोंने स्वयंको अधिक प्रसन्न बताया । ऑस्ट्रेलियामें ३२ प्रतिशत धार्मिक लोगोंने शेषकी तुलनामें स्वयंको अधिक प्रसन्न बताया ।
इस सर्वेक्षणमें जिन देशोंसे ब्यौरा लिया गया था, वहांके लोग नास्तिकोंकी तुलनामें अधिक प्रसन्न दिखे ।

इस सर्वेक्षणका कहना है कि धार्मिक प्रवृत्तिके लोग न केवल अधिक प्रसन्न रहते हैं, वरन उनकी जीवनशैली भी अच्छी रहती है ।

 

“जो विज्ञान लाखों वर्ष प्राचीन सनातनका विज्ञान बता चुका है, वह आजका विज्ञान अब सिद्ध कर रहा है और बुद्धिजीवि कहते हैं कि धर्मके कारण ही सब युद्ध हो रहे हैं । वास्तवमें युद्ध धर्मके कारण नहीं धर्मान्धताके कारण हो रहे हैं, जो इस्लाम और ईसाईयत निपुणतासे फैला रहे हैं । वस्तुतः सनातन धर्म ही शान्तिका मूल है; इसलिए आज अन्य लोग भी इसकी ओर स्वतः ही आकर्षित हो रहे हैं ।” – सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ

स्रोत : अमर उजाला



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