सूक्ष्म इन्द्रियोंको जागृत कर उन्हें विकसित करनेके लाभ (भाग – २)  


सूक्ष्म इन्द्रियोंके साथ विवेकके जागृत होनेसे व्यक्तिको सत्त्व, रज और तम, इन तीनों गुणोंमें भेद समझमें आता है । आज अधिकांश लोग पाश्चात्योंका अन्धानुकरण करते हैं; क्योंकि उनकी सूक्ष्म इन्द्रियां जागृत ही नहीं होती हैं; फलस्वरूप, सात्त्विक स्पन्दन क्या होते हैं ?, इसका उन्हें ज्ञान ही नहीं होता है ।  सूक्ष्म इन्द्रियोंके जागृत होनेसे हम सात्त्विक जीवन प्रणाली व्यतीत कर सकते हैं, जिससे हमपर देवकृपा शीघ्र होती है ।  
 हमारे आश्रममें स्त्री और पुरुष जब प्रथम बार आते हैं तो उनमेंसे अधिकांश लोगोंका वर्तन, विचार और कृति सब तामसिक होते हैं । तमोगुणसे आवरण शरीर, मन एवं बुद्धिपर सूक्ष्म काला आवरण बढता है; किन्तु अज्ञानता और सूक्ष्म इन्द्रियोंके जागृत न होनेसे वे प्रत्येक कृति तामसिक ही करते हैं । जैसे फूल लानेकी सेवा हो तो तामसिक पुष्प ले आते हैं, जो देवताओंको चढाए नहीं जा सकते हैं । जैसे कुछ दिवस पूर्व हमने एक साधकको भीतपर (दीवारपर) लगानेवाली घडी क्रय करनेकी सेवा दी तो वह भी तामसिक आकृतिकी ले आए ।  पिछले अनेक वर्षोंके अनुभवके मध्य मुझे यह ज्ञात हुआ कि समाजकी सूक्ष्म  इन्द्रियां कार्यरत नहीं होनेके कारण उनके अधिकांश दैनन्दिन जीवनसे सम्बंधित निर्णय साधना एवं धर्मपालन हेतु पोषक नहीं होते हैं; अतः इस प्रक्रियाको सिखानेका प्रयास कर रहीं हूं ! किन्तु मेरे पास कोई ‘जादू’की छडी नहीं है, जो मैं घुमाऊंगी और आपकी सूक्ष्म इन्द्रियां कार्यरत हो जाएंगी ।  इस हेतु आपको अपने ऊपर प्रक्रिया करनी होगी और उस हेतु धैर्य धारण कर कुछ वर्ष योग्य पुरुषार्थ करना होगा ।  प्राचीन कालमें सभीकी वृत्ति सात्त्विक होनेके कारण उनकी सूक्ष्म इन्द्रियां कार्यरत थीं, हमें उस प्राचीन परम्पराको पुनर्जीवित करना है ।  – पूज्या तनुजा ठाकुर  (क्रमश:)



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