सूक्ष्म जगतमें भी अनिष्ट शक्तियोंके, उनकी शक्ति अनुरूप भिन्न प्रकार होते हैं |


om

ख्रिस्ताब्द २०१०में जब मैं झारखण्ड स्थित एक ग्राममें स्थित काली मन्दिरमें आरती करवाया करती थी तो उस मध्य नियमित रूपसे कुछ साधकोंमें अनिष्ट शक्तियां प्रकट होती थीं, आरम्भमें मुसलमान भूत, आरती एवं संस्कृत वर्गका विरोध करने हेतु बाल एवं युवा साधकोंमें प्रकट होते थे; परन्तु जब काली माताकी कृपासे उन्हें गति मिलने लगी तो हमारे ग्रामके हिन्दुओंके पितर, जिन्हें गति नहीं मिली थी,वे उन मुसलमान भूतोंको भगाकर स्वयं प्रकट होकर गति मांगने लगे । यह भी तब ज्ञात हुआ जब एक हिन्दू कुलके पूर्वजने एक दिवस एक साधकमें प्रकट होकर कहा, “मैंने सभी मुल्लोंको खदेड दिया है, ध्यानसे देखो वे उधर खडें हैं” और सचमें जब मैंने सूक्ष्मसे देखा तो पाया कि सहस्रोंकी संख्यामें अनिष्ट शक्तियां मन्दिरसे एक किलोमीटर दूरसे सब देख रही थीं, वे मन्दिर प्रांगणमें आना तो चाहती थीं; परन्तु वे उस पूर्वजके लिंगदेहसे भयभीत भी थीं । जिस पूर्वजने उन मुसलमान भूतोंको खदेड दिया था, उनके विषयमें संक्षेपमें बताती हूं । वे एक कृष्ण भक्त थे और ‘हरे राम हरे कृष्ण’ महामंत्रका जप किया करते थे । उनके हमारे साधकोंमें प्रकट होनेसे दो वर्ष पूर्व एक दिवस मैं इनके घर गई थी, उनके घरमें उनका एक बडासा छायाचित्र लगा हुआ था, मेरी दृष्टि जैसे ही उस चित्रपर पडी, उस हंसमुख छायाचित्रके नेत्र लाल हो गए और मुझे घूरने लगे । मुझे समझते देर नहीं लगी कि इन्हें गति नहीं मिली है और इन्हें ब्रह्म राक्षसकी योनि प्राप्त हुई है । मैंने उनके घरवालोंको संकेतकी भाषामें बिना उनके मनको चोट पहुंचाए, यह बतानेका प्रयास किया कि उनके छायाचित्र दृष्टिके सामनेसे हटा दें; परन्तु उन्हें यह भ्रम था कि वे संत हैं; अतः मेरा इस प्रकार कहना, उन्हें अच्छा नहीं लगा । मैंने उन्हें पुनः इस सम्बन्धमें कभी कुछ नहीं कहा । 
जब अनिष्ट शक्तियोंका प्रकटीकरण होने लगा और सूक्ष्मसे ग्रामके अतृप्त हिन्दू पूर्वज, जो हिन्दू थे, उन्होंने देखा कि काली माता उन्हें गति दे रही हैं तो एक दिवस जिनके विषयमें मैंने ऊपर लिखा है वे प्रकट हो गए और गति मांगने लगे । जब मैंने उनसे उनका नाम पूछा, तो वे मुझसे कहने लगें तुम्हें तो पता ही है मैं कौन हूं और आश्चर्य वे उसी प्रकार मुस्कुराए जैसे उस छायाचित्रमें मुस्कुरा रहे थे, मुझे समझते देर नहीं लगी कि यह उन्हीं सज्जनका लिंगदेह है कि तभी एक और प्रसंग घटित हुआ, दो और साधक उस साधकके चरण दबाने लगे जो प्रकट हुए थे, जब मैंने पूछा कि ये दोनों कौन हैं, वे अहंकारसे बोलें, “ये मेरे शिष्य हैं!”
मुझे इस बातका शोध करना था कि जो भगवान् श्रीकृष्णका महामंत्रका जाप करते और करवाते थे और जिन्हें अनेक लोग गुरु मानते थे उन्हें गति क्यों नहीं मिली ? मैंने उनसे पूछा, “आप सर्वप्रथम यह बताएं कि आपको गति मिली क्यों नहीं, आप तो नामधारी थे ?” उन्होंने जो उत्तर दिया वह सभीके लिए सीखनेका विषय है । इसलिए उन्होंने जो कहा उसे शब्दश: आपके समक्ष प्रस्तुत करती हूं । उन्होंने कहा, “जब मेरा अंत समय निकट आनेवाला था तब मेरा मन गृह क्लेशमें उलझा हुआ था; अतः नामजप नहीं चल रहा था इसलिए मैं अटक गया ।” मैंने कहा तो आपने अपनी कुलदेवीसे गति क्यों नहीं मांगी, उनके घरमें कुलदेवीका मन्दिर भी है । तो उन्होंने एक और बडी गूढ बात कही । उन्होंने कहा, “हमारा एक पालतू कुत्ता था, एक दिवस उस कुत्तेने दीर्घशंका (शौच) माताके मन्दिरमें कर दिया था, मैंने सोचा पालतू कुत्ता है; अतः माताकी मन्दिरकी शुद्धि हेतु कुछ विशेष प्रयास नहीं किया फलस्वरूप कुलदेवी भी मुझसे रुष्ट हो गई थीं ।” इतना कहकर वे मुझसे गति मांगने लगे, मैंने उनसे कहा, ‘मैं तो स्त्री हूं, गति तो पुत्र देता है, आप उनके पास जाएं और उनसे गति मांगे” । वे क्रोधित होकर कहने लगें, “आजकलका पुत्र, पुत्र कहां होता है, वह तो कुपुत्र होता है, पितृपक्षमें मांस-मदिराका सेवन करता है, वह हमें क्या गति देगा, देखा नहीं है हमने उन्हें शापित कर उनका जीवन कैसे नरक बना दिया है !!”
इस प्रसंगसे जो कुछ सीखने हेतु मिला वह इस प्रकार है –

  • एक तो यह कि सूक्ष्म जगतमें भी अनिष्ट शक्तियोंके स्तर होते हैं, एक ब्रह्म राक्षसमें इतनी शक्ति होती है कि वह अनेक भूतोंके ऊपर हावी हो सके तभी तो उस ब्रह्म राक्षसने इतने सारे मुसलमान भूतोंको खदेडकर भगा दिया था और जैसे उन्होंने कहा था कि अब कोई मुसलमान भूत जबतक हम हिन्दुओंको गति न मिल जाए, यहां काली माताके प्रांगणमें नहीं प्रकट होगा और वैसा ही हुआ उसके पश्चात् उस प्रांगणमें कोई मुसलमान भूत पुनः प्रकट नहीं हुआ । अर्थात् ब्रह्म राक्षसकी शक्तिसे सामान्य भूत डरते हैं और उनकी आदेशका पालन करते हैं ।
  • यदि अंत समयमें नामजप न हो और मायाके विषयमें विचारसे मन उद्विग्न हो तो जीवात्माका लिंगदेह अटक सकता है ।
  • यदि तथाकथित गुरुको गति न मिले तो उनके शिष्योंको भी गति नहीं मिलती है अर्थात् यहांपर गुरु-शिष्यमें आसक्ति उनके आगेकी यात्राको बाधित कर सकते हैं ।
  • आज अनेक लोग घरोंमें कुत्ते रखते हैं; पंरतु उससे सम्बंधित जो सावधानियां रखनी चाहिए वह नहीं रखते हैं, इससे घरकी या घरमें स्थित मन्दिरकी शुचिता भंग होती है । जब कुलदेवीके मन्दिरमें कुत्तेने शौच किया था तो शास्त्र अनुसार उस स्थानका विधिवत शुद्धिकरण करना आवश्यक होता है । ऐसा नहीं करनेपर कुलदेवी रुष्ट हो सकती हैं; अतः कुत्तेको रसोईघर एवं पूजा घरमें कदापि नहीं आने देना चाहिए ।
  • यदि समाज या हम अपने मनसे किसी व्यक्तिको संत मान लें तो वे संत नहीं होते हैं, संत पदपर आसीन होने हेतु ७०% आध्यात्मिक स्तर साध्य होना परम आवश्यक है । यहां जिस व्यक्तिकी जीवात्मा ब्रह्म राक्षस योनि प्राप्त हुई थी, उनका आध्यात्मिक स्तर ५०% था; अतः जबतक कोई संत किसी साधकको संत न बताए, कुटुंबके सदस्योंने अपने मनसे उन्हें संत नहीं मानना चाहिए ।
  • पुत्र यदि श्राद्ध पक्षमें शास्त्र अनुसार धर्माचरण नहीं करते हैं तो पितर उन्हें शापित करते हैं ।
  • गति पाने हेतु सूक्ष्म जगतमें भी प्रतिस्पर्धा सी लगी रहती है और वहां भी जिसकी लाठी उसकी भैंस वाला सिद्धांत चलता है अर्थात् जिसमें अधिक सूक्ष्म बल होता है, उसका आधिपत्य चलता है ।
  • अच्छे आध्यात्मिक स्तरके जीवको यदि गति न मिले तो उसे बलाढ्य आसुरी योनि प्राप्त होती है ।
  • किसे गति मिली है और किसी नहीं मिली है, यह सामान्य बुद्धिसे समझना असम्भव है; अतः पूर्वजोंका चित्र नहीं रखना चाहिए ।
  • हमारा आध्यात्मिक स्तर ६०% से अधिक होनेपर ही अंतर्मनमें साधनाका सातत्य बना रहता है, इससे नीचेके स्तरपर हमें सजग होकर अपनी साधनामें निरंतरता बनाए रखना चाहिए ।- तनुजा ठाकुर


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

सम्बन्धित लेख


विडियो

© 2021. Vedic Upasna. All rights reserved. Origin IT Solution