जब शिवजीने मेरे मानस नमस्कारको स्वीकर कर किए अपने दर्शनकी व्यवस्था


२ अप्रैल २०१२ को देवघर, झारखण्डमें बासुकीनाथ शिवके देवालयके (मन्दिरके) प्रांगणमें एक बाल साधकका उपनयन संस्कार था, मैं उसी दिवस देहलीसे जसीडीह पहुंचकर अपने मूल ग्राम जानेवाले थी; अतः एक साधकके आग्रहपर वहांसे कुछ दूरीपर स्थित एक सुप्रसिद्ध देवालयमें होनेवाले उपनयन समारोहमें सहभागी होने हेतु गई थी । उपनयन संस्कारके पश्चात् सोचा कभी यहां नहीं आई हूं; अतः भोले शंकरके दर्शन कर लूं । देवालयके द्वारपर पहुंच कर झांककर देखा तो पाया कि भीतरका गर्भगृह भक्तोंसे भरा हुआ था और थोडी भीड भी थी । मैंने भगवान शिवसे करबद्ध होकर देवालयके द्वारके बाहरसे ही कहा “हे प्रभु, भीडमें दर्शन नहीं कर पाऊंगी, साथ ही शरीरमें भीडसे लडकर आपके दर्शन करनेकी शक्ति नहीं है, यह भी आप जानते ही हैं और भीडमें आपके दर्शन व पूजन भी नहीं हो पाएगा; अतः यदि अगली बार आपने बुलाया तो आपके दर्शन करूंगी, आप मेरा मानस नमस्कार स्वीकार करें ।” मैं यह प्रार्थना कर देवालयके द्वारसे बाहर जाने ही वाली थी कि अचानक एक पण्डे और पुलिसने सारे भक्तोंको देवालयके गर्भगृहसे बाहर कर दिया और वहां मात्र एक या दो व्यक्ति रह गए, एक साथ पुलिस और पण्डेने मुझसे कहा “भीतर जाना है क्या” ?  मैं बाहर एक ओर खडी थी, मैंने कहा “हां, किन्तु भीडसे डर लगता है ।” स्वास्थ्य ठीक न होनेके कारण मैं स्वतः ही भीड-भाडवाले स्थानमें नहीं जाती हूं । मुझे ज्ञात है कि मेरे शिवजी मेरा रक्षण करनेमें समर्थ हैं; किन्तु मैं उनकी एक सेविका मात्र हूं, ऐसेमें उन्हें जानबूझकर अपने स्वामीको मेरे रक्षण हेतु कष्ट देनेका प्रयास कैसे कर सकती हूं ?
पंडा आया और मेरे कुछ बोलनेसे पहले ही एक क्षणमें मुझे बाबाके गर्भगृहमें हाथ पकड कर ले गया, वहां दो भक्त थे पूजा कर रहे थे । उसने मुझे उनसे लेकर एक लोटेसे भरा जल मेरे हाथमें थमा दिया और संकेत किया कि शिवजीको मैं जल चढा दूं, मैंने शिवको जल अर्पण कर शरणागत भावसे उन्हें नमन किया और आत्मनिवेदन करते हुए अपना कार्य बताया और एक प्रश्न पूछा जिसका उत्तर तो ज्ञात था; किन्तु शिवजीसे उसके उत्तरका अनुमोदन चाहती थी !” पूजा कर बाहर आई तो जैसे सामान्यत: आजके पण्डे और पुलिसवाले दर्शन करवानेपर पैसेकी मांग करते हैं; किन्तु उन्होंने कुछ नहीं मांगा, जो मेरे लिए एक सुखद आश्चर्य था । मैं पण्डेको दक्षिणा देने लगी तो वह हंसकर बोला “रहने दें, आपका दर्शन व्यवस्थित हो गया न, बस ।” उस समय जैसे मुझे उस पण्डेमें मेरे शिवके ही स्वरुपके दर्शन हुए । मैंने उन्हें आग्रह करते हुए कुछ पैसे हाथमें थमा दिए और पुलिसवालेको कृतज्ञता व्यक्त कर, देवालयके बाहर आ गई ।
देवालयसे सौ मीटरकी दूरी भी मैं नहीं चली होउंगी और मेरे प्रश्नका उत्तर एक घाटपर बहुत बडे और सुस्पष्ट अक्षरमें लिखा था ! तब हमारे गुरुके गुरु परम पूज्य भक्तराज महाराजका सुवचन ध्यानमें आ गया – ‘सगुण निर्गुण नहीं भेदाभेद’ ! उस निर्गुण परमेश्वर, मेरे श्री गुरु, सगुण शिव और अंतरात्मासे प्राप्त ज्ञानमें कोई भेद नहीं होता; क्योंकि ये सब एक परम तत्त्वके भिन्न स्वरुप  हैं ! – तनुजा ठाकुर  (२३.४.२०१३)



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