यदि सुपुत्र हो तो धन संचय क्यों नहीं करना चाहिए ?


शंका समाधान
यदि पुत्रः कुपुत्रः स्यात् व्यर्थो हि धनसञ्चयः ।
यदि पुत्रः सुपुत्रः स्यात् व्यर्थो हि धनसञ्चयः ॥
अर्थ : यदि पुत्र कुपुत्र हो तो धनसंचय व्यर्थ है और यदि पुत्र सुपुत्र हो, तो भी धनसंचय व्यर्थ है ।
इस शास्त्र वचनपर एक पाठकने प्रश्न पूछा है, जो इसप्रकार है – यदि सुपुत्र हो तो धन संचय क्यों नहीं करना चाहिए ?

इसका उत्तर इसप्रकार है – कुपुत्र, पिताके अर्जित धन-सम्पदाका नाश अपनी कुप्रवृत्तियोंमें व्ययकर व्यर्थ कर देता है । यदि सुपुत्र हो तो वह अपने क्रियमाण एवं सुसंस्कारसे धन स्वयं अर्जित कर लेता है ! सुपुत्रका अर्थ होता है, साधक प्रवृत्तिका धर्मनिष्ठ जीव । धर्मनिष्ठ जीवके पास अपने जीवनको व्यतीत करने हेतु आवश्यक सुख-सम्पत्ति, यश-ऐश्वर्य ईश्वरीय कृपासे स्वतः ही आकृष्ट हो जाता है और वह सन्तोषी प्रवृत्तिके कारण जितना मिले, उसमें सन्तुष्ट रहकर साधनारत रहता है और सुखी जीवनकी भी यही कुंजी है । वैसे भी भाग्यसे अधिक किसीको कुछ नहीं मिलता है; अतः अपनी अगली पीढीके लिए धन एकत्रित करनेके स्थानपर उनके लिए साधनाकर, ईश्वरीय कृपा अर्जित करना चाहिए, उनमें धर्म और साधनाका संस्कार अंकित करना चाहिए । ध्यान रहे, साधनाका संस्कार सूक्ष्मतम होता है; इसलिए किसी जीवद्वारा साधनाका फल उसकी अगली सात पीढियोंतकके सदस्योंको मिलता है । वस्तुत: उस कुलमें साधनाका तेज अनेक पीढियोंतक व्याप्त रहता है एवं उच्च कोटिके साधक जीवका जन्म होता है ! इसी सिद्धान्त अनुसार तो वर्ण व्यवस्था, जाति व्यवस्थामें परिवर्तित हुई थी; किन्तु कालान्तरमें हिन्दुओंद्वारा वर्णधर्मका पालन नहीं करनेके कारण वर्णसे निर्मित जाति आज कोढ समान हिन्दू धर्मको खोखला कर रही है !

जिस घरमें पिता साधना नहीं करते हैं, वे भोगी, निधर्मी, कुसंस्कारी या नास्तिक होते हैं । उस घरकी सन्तानोंको अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट तो होता ही है, अनेक बार वे निधर्मी या अहिन्दू पन्थोंमें स्वतः ही धर्मान्तरित हो जाते  हैं ! जिसकी परिणति कुछ समय उपरान्त कुलनाशमें होती है ! यह पूर्वजोंके पुण्यके क्षय होनेके कारण भी होता है । इसीलिए अपनी सन्तानोंको धन नहीं, साधनाकी थाती देनी चाहिए; किन्तु यदि कोई व्यक्ति प्रातःसे रात्रितक मात्र लौकिक धनको एकत्रित करनेमें लगा रहेगा तो वह साधना कब करेगा ? और जब साधना नहीं करेगा तो अपनी अगली पीढीको क्या देगा ? ध्यान रहे, स्थूल और नश्वर धनकी अपेक्षा सूक्ष्म साधनाका तेज अधिक कालतक टिकता है ! – तनुजा ठाकुर



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