सुसंस्कार कैसे निर्माण होता है ?, इसका एक उदहारण !


सुसंस्कार कैसे निर्माण होता है ?, इसका एक उदहारण देती हूं । हमने आरम्भसे ही ‘व्हाट्सऐप्प’के ‘जाग्रत भव’ गुटमें यह नियम बनाया था कि मात्र संस्थाकी ओरसे नियमित तीन या चार धर्मशिक्षण या राष्ट्र रक्षण निमित्त लेखन या सत्संग भेजे जाएंगे, अन्योंको इसमें ‘पोस्ट’ करनेकी अनुमति नहीं होगी ! इस गुटका मुख्य उद्देश्य समाजमें जाग्रति निर्माणकर लोगोंको साधनाकी ओर उन्मुख करना है, अर्थात अन्तर्मुख करना है; इसलिए हमने इसमें, जो मात्र सीखनेकी इच्छा रखते हैं, उनके लिए ही यह गुट बनाया है ! समयका महत्त्व क्या है ?, इसका भान आज समाजको नहीं है; इसलिए आज अधिकांश लोग अनावश्यक बातें, चित्र, छायचित्र, चुटकुले इत्यादि सामाजिक प्रसार माध्यमोंपर साझाकर अपना व दूसरोंका समय व्यर्थ करते हैं; इसलिए हमने इस गुटमें किसी औरको कोई और ‘पोस्ट’ करनेकी अनुमति नहीं दी थी !
    कुछ दिवस पूर्व आश्रमके दो साधकोंके अनुरोधपर हमने उस गुटमें सभीको ‘पोस्ट’ करनेकी अनुमति दे दी और वही हुआ, जिसका हमें अनुमान था ! अधिकांश सन्देश, जो गुटमें प्रेषित किए जा रहे थे, उनका उस गुटके उद्देश्यसे कोई सम्बन्ध नहीं था ! सभी गुटोंकी स्थिति ऐसी ही थी; किन्तु सबसे अच्छी बात यह थी कि इस गुटके अनेक सदस्योंको अन्य सदस्योंद्वारा ऐसा करना अच्छा नहीं लगा और वे उसमें अन्य लोगोंको ‘पोस्ट’ करनेकी अनुमति न देनेका अनुरोध करने लगे ! और हमने पुनः पहलेवाला पर्याय लगा दिया अर्थात अन्योंको ‘पोस्ट’ करनेकी अनुमतिवाला पर्याय हटा दिया !
इस प्रसंगसे मैं क्या बताना चाहती हूं ?, यही कि समाजको योग्य प्रकारसे दिशा दी ही नहीं गई है; यदि योग्य दिशा देते तो आज इस देशकी यह स्थिति नहीं होती !


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