तीव्र पितृ दोषके कारण होनेवाले कष्ट वंशानुगत हो जाते हैं !
तीव्र पितृ दोषके कारण होनेवाले कष्ट वंशानुगत हो जाते हैं । कुछ दिवस पूर्व देहलीमें इसका मुझे पुनः एक उदहारण मिला । मैं एक घरमें गई थी । उनके घरमें उनका पुत्र स्नातक पूर्णकर अपने घरके एक कक्षमें पिछले छ: माहसे बैठा रहता है । मैंने उनसे सहज ही पूछा आपका पुत्र क्या करता है ? उन्होंने कहा, “कुछ नहीं । सारा दिन भ्रमणभाष लेकर अपने कक्षमें बैठा रहता है । उसके स्नातककी पढाई तो छ: माह पूर्व ही पूर्ण हो गई थी ।“ मैंने कहा, “आपलोगोंने उससे पूछा नहीं कि उसने अपने भविष्यके लिए क्या सोचा है ?” तो उन्होंने कुछ बातें बताई जो यहां बताना महत्त्वपूर्ण नहीं है । किन्तु एक बात जो उस घरकी स्त्रीने मुझे बताई और जो महत्त्वपूर्ण है वह यह थी कि उनके दोनों देवर भी ऐसे ही हैं उन्होंने अपने जीवनमें कुछ नहीं किया और एक अपनी बहनके पास और एक अपनी माताजीके पास यूं ही निठ्ठलेपनमें अपना सम्पूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे हैं । अर्थात यह कष्ट पितृदोषके कारण है और यह वंशानुगत हो चुका है । वैसे वे साधक प्रवृत्तिके हैं तो मैंने उन्हें इसके उपाय तो बता दिए हैं; किन्तु तीव्र पितृदोषका निवारण करना कितना अनिवार्य है, यह ध्यानमें आता है ! वैसे वर्तमान कालमें यह निठ्ठलेपनका रोग, पुरुषोंमें बहुत बडे प्रमाणमें दिखाई दे रहा है और वह भी युवा वर्ग इससे अधिक प्रभावित हो रहा है विशेषकर महानगरोंमें, घरके ज्येष्ठ पुत्रोंमें यह समस्या अधिक दिखाई देती है !
मैंने अपने आध्यात्मिक शोध जो जाग्रत सूक्ष्म इन्द्रियोंकी सहायतासे किया जाता है उसमें पाया है कि अनेक वंशानुगत रोग पितृदोषके कारण होते हैं इतना ही नहीं यदि कोई पति-पत्नीका वैवाहिक जीवन अत्यधिक कलह-क्लेशमें बीता हो तो उनकी सन्तानोंके सम्बन्ध-विच्छेद होनेकी सम्भावना बहुत अधिक होती है; इसलिए पितृदोषका निवारण करना अनिवार्य होता है एवं इसे प्राथमिकता देकर दूर करना चाहिए ।
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