तिलक धारण क्यों करें ? (भाग-१) 


आजकल अधिकांश हिन्दुओंका माथा तिलकविहीन होता है । तिलक क्यों लगाना चाहिए ?, इसका महत्त्व ज्ञात न होनेके कारण ही ऐसा हो रहा है । तो अबसे आपको तिलकके विषयमें प्रतिदिन थोडी-थोडी जानकारी देंगे, जिससे सभी इसका महत्त्व समझ सकें । हिन्दू संस्कृतिमें मस्तकपर तिलक लगाना शुभ एवं आवश्यक धार्मिक कृत्य माना जाता है, इसे सात्त्विकताका प्रतीक माना जाता है; विजयश्री प्राप्त करनेके उद्देश्यसे रोली, हलदी, चन्दन या कुमकुमका तिलक या कार्यकी महत्ताको ध्यानमें रखकर, इसी प्रकार शुभकामनाओंके रूपमें हमारे तीर्थस्थानोंपर, विभिन्न पर्वों-त्योहारों, विशेष अतिथि आगमनपर उनके स्वागत करनेके उद्देश्यसे भी लगाया जाता है । वस्तुतः तिलकका अर्थ है, माथेपर लगाया जानेवाला वह सङ्केत, जो हमें हमारे वैदिक होनेका अभिज्ञान कराता है । शास्त्रानुसार यदि द्विज (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य) तिलक नहीं लगाते हैं तो उन्हें चाण्डाल या मलेच्छ कहते हैं । तिलक सदैव दोनों भौहोंके मध्य आज्ञाचक्रपर भृकुटीपर किया जाता है ।
इसे चेतना केन्द्र भी कहते हैं । शास्त्रके अनुसार –
 पर्वताग्रे नदीतीरे रामक्षेत्रे विशेषतः 
 सिन्धुतिरे च वल्मिके तुलसीमूलमाश्रीताः ।।
मृदएतास्तु संपाद्या वर्जयेदन्यमृत्तिका । द्वारवत्युद्भवाद्गोपी चंदनादुर्धपुण्ड्रकम् || 
अर्थ : चन्दन सदैव पर्वतके शिखरका, नदी तटकी मिट्टीका, पुण्य तीर्थका, सिन्धु नदीके तटका, चींटीकी बाम्बी व तुलसीके मूलकी मिट्टीका या चन्दन, वही उत्तम चन्दन है । तिलक सदैव चन्दन या कुमकुमका ही करना चाहिए । कुमकुम, हलदीसे बना हो तो उत्तम होता है । (क्रमशः)


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