उपासनाका गुरुकुल कैसा होगा ? (भाग-२)


हमारे देशमें हमारे पूजनीय गुरुओंने कभी भी विद्याको बेचा नहीं ! पात्रता अनुसार वे विद्यादान किया और विद्याप्राप्तिके पश्चात शिष्य भी अपनी इस गुरु ऋणसे मुक्त होने हेतु दूसरोंको निःशुल्क विद्या दान दिया करते थे ! और इसे ही गुरु-शिष्य परंपरा कहते हैं ! ऐसे गुरुकी समाजमें बहुत अधिक प्रतिष्ठा थी | लोग उन्हें देवतुल्य पूजते थे ! शिक्षाका व्यापरिकारणका परिणाम तो आप देख ही रहे हैं | इसपर कुछ अधिक बोलनेकी आवश्यकता नहीं है !

     उपासनाके गुरुकुलमें विद्यार्थियोंको निःशुल्क ज्ञान दिया जाएगा | उनके माता-पिता या अभिभावक, विद्याके लिए शुल्क देनेके स्थानपर गुरुकुलमें अपन सामर्थ्य अनुसार सेवा प्रदान कर सकते हैं, इससे उन्हें गुरुकुलके प्रति आत्मीयता निर्माण होगी एवं उनके बच्चोंको किसप्रकार ज्ञान दिया जा रहा है इसका भी उन्हें बोध होगा | इससे गुरुकुल पद्धतिके प्रति पुनः लोगोंका सम्मान बढेगा एवं विद्याके आदान-प्रदानकी दैवी परंपरा पुनः आरम्भ होगी !
    विद्या निःशुल्क रखनेके कारण विद्यार्थी पूर्वकालके गुरुकुल समान विद्या अर्जन करते हुए गुरुकुलको अपनी सेवा देंगे ! आचार्यगण सपरिवार विद्यालयमें रहकर विद्यार्थियोंमें दिव्य गुणोंको अंगीकृत करेंगे | आचार्योंके पूरे पारिवारका व्यय गुरुकुल उठाएगा इससे वे निश्चिन्त होकर विद्या दान कर सकेंगे !
यदि आप ऐसे गुरुकुलके निर्माणमें किसी भी प्रकारसे योगदान देना चाहते हैं तो हमें अवश्य संपर्क करें ।


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