उपासनाके आश्रमके निर्माण कार्यके मध्य मिले सीखने योग्य तथ्य (भाग – ६)


जब हम उपासनाके आश्रम हेतु भूमिका चयन कर रहे थे तो कुछ स्वार्थी लोगोंने अपनी स्वार्थ सिद्धि हेतु कुछ ऐसे भूमि दिखाए जो पूर्णत: बंजर थे; किन्तु वे बहुत अधिक सस्ते थे और वे उनके किसी परिचितके थे तो उन्हें उसके विक्रयसे निश्चित ही अर्थलाभ होता ! हमने भूमिमें जलकी व्यवस्था न होनेके कारण उसे नकार दिया ! जब आज जिस स्थलपर उपासनाका आश्रम है वहांकी भूमिपर आए तो उसमें अत्यधिक हलकापन था | उस समय तो खेतमें कुछ भी लगा हुआ नहीं था क्योंकि गेहूंकी फसल कट चुकी थी | किन्तु कुछ समय पश्चात हमें ज्ञात हुआ कि यहां काली मिट्टी है जो बहुत ही उपजाऊ होती है !
उपासनाकी भूमि क्रय करनेके पश्चात मैं दो और लोगोंकी भूमिपर गई | वहां मुझे बहुत अधिक नकारात्मकता अनुभव हुआ ! उनसे बातचीत करनेपर ज्ञात हुआ कि वह बंजर होनेके कारण पहले वीरान था ! अर्थात इससे एक बात और समझमें आई कि जलसे और भूमिसे भी स्थानकी सात्त्विकता प्रभावित होती है ! इन दोनों ही लोगोंने कहा कि अनेक कोटि रुपए लगाकर एवं जलके सर्व प्रबंध करके भी इन्हें इस भूमिसे जो अपेक्षित था वह नहीं मिल रहा है |
यह गुरुकृपा ही है कि हमें उपजाऊ भूमि मिली है ! मुझे सदैवसे ही आश्रम परिसरमें चारों और हरियाली चाहिए थी और इस बातका ध्यान हमारे भगवानजीको था ! इसलिए पिछले बरसातमें हमने आपातकालमें उपयोगी ऐसे जडी-बूटी एवं आयुर्वेदिक उपचार हेतु पोषक पुष्प व पौधोंका रोपण किया है ! इससे मुझे ध्यानमें आया कि आश्रम लेते समय मैंने इस बातका विशेष ध्यान नहीं रखा था, क्योंकि हमारे पास अभी बहुत ही सीमित धन है; अतः उसीका आधार बनाकर मैंने मात्र साधकोंको सर्व सुविधा हो एवं वास्तु सात्त्विकत हो मात्र इस बातका ध्यान रखा था; किन्तु हमारे कृपालु शिवने मेरे अंतर्मनमें जैसी हरी भरी वाटिकाके मध्य आश्रम हो, इसकी कल्पनाका भी ध्यान रखा, इस हेतु हम उनके चरणोंमें मन:पूर्वक अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं !


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