उपासनाके आश्रमके निर्माण कार्यके मध्य मिले सीखने योग्य तथ्य (भाग – १)
हमारे श्रीगुरुने एक बार कहा था कि जब हम गुरुके स्थूल संरक्षणमें रहते हैं तो गुरु हमारी प्रगति हेतु जो आवश्यक है वही साधना व सेवा हमसे करवाकर लेते हैं एवं हमारे लिए आवश्यक एवं योग्य मार्गदशन करते हैं, एवं जब हम उनके स्थूल संरक्षणसे बाहर जाते हैं तो जो परिस्थितियां निर्माण होती हैं वे ईश्वर हमें सीखाने हेतु निर्माण करते हैं | उपासनाके आश्रमके निर्माणके मध्य मुझे भी ईश्वरने बहुत कुछ सिखाया| वैसे इससे पूर्व भी झारखण्ड एवं बिहारमें उपासनाके आश्रमका निर्माण कार्यकी सेवा कर चुकी हूं; किन्तु इस बार यह सब वृहद स्तरपर हो रहा है इसलिए इस बार की सीख और चुनौतियां भी थोडी भिन्न रहीं ! चाहे जो हो इस सेवामें सदैव समान बहुत आनंद आया !
इस सन्दर्भमें एक अनुभूति साझा करती हूं | मई २००४ में हमारे श्रीगुरुने एक बार, हम कुछ साधक कहां और किस नगरमें रहकर प्रसार करेंगे, इस विषयमें बताते हुए, जब मेरी बारी आई, तो कहा था, “आपकी मुझे चिंता नहीं है आपके लिए तो सम्पूर्ण विश्व ही घर है ! और उनके इस तथ्यकी प्रतीति आज हो रही हैं | ईश्वर आज्ञा अनुरूप इंदौरमें आकर आश्रम निर्माणका कार्य जब आरम्भ किया तो एक पलके लिए भी नहीं लगा कि यहां तो मेरा कोई अपना है ही नहीं ! जिस ग्राममें हमने निर्माण कार्य आरम्भ किया वहांके लोग भी बडे अपनेसे लगे और आश्रमकी भूमिपर आकर लगा जैसे इस स्थानसे चिर परिचित हूं | कुछ दिवस पूर्व उपासनाके उद्घाटन समारोहमें एक संत (पूज्य चेतन बाबा) आये थे तो मैंने उनसे कहा कि बाबा यहां इतने बडे परिसरमें एकाकी प्रथ तीन बजे उठकर नित्य कर्म हेतु बाहर थोडी दूर जानेपरपर भी कभी मनको एक प्रतिशत भी भय नहीं लगा तो उन्होंने झटसे कहा, “कैसे लगेगा आपने यहां पूर्व जन्मोंमें साधना की है और यह भूमि तपोस्थली है !” एक और सन्त उद्घाटन समारोहके दिवस आये थे वे तो मात्र तीन मिनिट ही रुके होंगे और उन्होंने भूमि अति पवित्र है यह तीन चार बार बोला ! और पूज्य चेतन बाबा तो यहांकी सात्त्विकतासे इतने मोहित हो गए की जो कहीं भी चार दिन नहीं रहते हैं वे १५ दिवस रहकर गए ! इसप्रकार इस भूमिपर आकर जो मुझे चैतन्यकी अनुभूति हुई थी उसकी प्रतीति अभी तक पांच सन्त दे चुके हैं ! आपको बता दें इस भूमिको देखनेके पश्चात मात्र पांच मिनिटमें इसे लेना है यह निश्चित कर, हमने इसकी अग्रिम राशि भूमिस्वामीको दे दी थी !
– (पू.) तनुजा ठाकुर, संस्थापिका, वैदिक उपासना पीठ
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